पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१४३

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वाय मानन्द मोहन घोस । जाते। परन्तु मापने धन संपय अषया अद्वितीय वैज्ञानिक कहलाने की अपेक्षा देश के नाना प्रकार के जनहित कार्यों को करने में, अपना ममय व्यतीत किया । जो समय उनका सदालत में जाने और अपने मुयझिनों से बातें करने मपया उनके लिए फानून फी कितायें देखने फा था यह समय वे भारत की भलाई के लिए एकान्त में बैठ कर विपार फरने प्रथया ब्रह्मसमाज में जाफर ईश्वर की प्रार्थना करने में लगाते थे। मुघहित लोग मापको दूढ़ ढांद कर निराश हो वापस चले जाते थे । आपके साथी रिस्टर लोग कहा करते थे कि फलकत्ता हाई कोर्ट ने एक साधारण रिस्टर खो दिया है। यदि वैरिस्टरी में भाप मग लगाते तो लाखों उपपा पैदा कर लेते। धाबू भानन्द मोहन प्रसाधारया वक्ता थे। जिस समय आप बोलने को खड़े होते उस समय न मालूम कदां से प्रापके हृदय में प्रसाधारण व उत्पन्न हो जाया करते थे। आप बोलते समय कभी “सोचते नहीं । । धारा प्रवाहवत् योलते ही चले जाते थे। बोलते समय आपके ख' को प्राकृति शान्त, सोम्य और प्रतिभामय दिखाई पड़ती थी। कटु यद कभी आप अपने मुख से नहीं निकालते थे। पापका भाषण उरल होता था। जिस समय माप बोलने को खड़े होते थे. सब लोग श्रोतागण शान्त, घुप चाप, आपके मुख की ओर टकटकी लगाए, आप की अमृतमयी वाणी को सुनने के लिए चकोरवत् बैठे रहते थे। एक बार कलकत्ता हाईकोर्ट में, एक मुफ़दमें पर बहस करने के लिए भाप बड़े हुए; उस समय आपके वक्तृत्य कौशश को देख कर जज साहब ने उब लोगों के सम्मुख स्पष्ट रूप से यह कहा था कि "पार्लियामेंट के शहर और कहीं भी हमने इस प्रकार भारवर्ष में मग्न करने वाली अपूर्व प्रतिभाशाली वक्ता नहीं सुनी।"

गत तीस वर्ष में कोई भी ऐसा देश हित का कार्य नहीं था जिसमें

भानन्द मोहन का हाथ न रहा हो । राजनीति, धर्म और समाज संस्कार इत्यादि सय प्रकार के देश हित कामों में आप बड़ी प्रसन्नता के साथ योग देते थे। इन्हीं सब कामों में फंसे रहने के कारण माप अपने व्यवः -