१९४ कांग्रेस-धरितायली। . में, अंगरेजी भाषा में, एम० ए० की परीक्षा पास की । और सन् १८६५ में बी० एल० को परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। इस परीक्षा में आप अपने साथियों में सब से अव्वल नम्बर रहे। अतएव कलकत्ता विश्वविद्यालय ने आपको एक स्वर्णपदक प्रदान किया। विश्वविद्यालय की सारी परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाने पर भी आप को ज्ञान-तृष्णा पूरी न हुई । मापने अपने अध्ययन को बराबर जारी रक्खा । अंगरेज़ी भाषा की सर्वोत्तम पुस्तकों को श्राप ने खूध ही मन लगाकर पढ़ा । जब इस से भी प्राप को सन्तोष न हुआ तब भाप ने जर्मन और फ्रेंच भाषाओं का भी अध्ययन किया। यूरोपीय इतिहास और राजनीतिशास्त्र का भी आपने खूब ही मनन किया है । इस प्रकार आपने परिश्रम करके भावा और विचार दोनों प्रकार के ज्ञान को उत्तम प्रकार से बढ़ाया । अंगरेज़ी भाषा पर आपको पूर्ण अधिकार है । विगत वर्ष अब • कांग्रेस का अधिवेशन फलकत्ते में हुआ था तब आप स्वागतकारिणी सभा के सभापति नियत हुए थे। उस समय जो आपने वक्तृता दी थी उस से भाप के पांडित्य का पूर्त रूप से परिचय मिलता है । गत नवम्बर मास में भी, जब लाट सभा के सम्मुख सभाओं के बन्द किए जाने का बिल पेश या उस समय भी आपने अपने भाषा ज्ञान का भली भांति परिचय दिया. था। प्राप की स्मरणशक्ति बहुत ही तीव्र है । इस कारण जो कुछ भापने पढ़ा है उसका उद्योग समय पड़ने पर लिखने अथवा बोलने में, भाप उत्तम रुप से कर सकते हैं। लिखते अथवा बोलते समय, भाप अंगरेज़ी भाषा के उत्तम उत्तम ग्रंथों के प्रमाण, सरलता पूर्वक देते चले जाते हैं। उस समय ऐसा मालूम होता है कि वे सब ग्रंथ आप को कंठस्थ हो। यी० एल० की परीक्षा पास हो जाने पश्चात, थोड़े दिनों बाद हो सन् १८६७ में, आपने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करना प्रारम्भ किया । पहले पहल आपने माननीय अस्टिस द्वारकानाथ मित्र का आश्रय ग्रहण किया । परन्तु घोड़े दिनों में ही मित्र महोदय इस
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