गोपाल कृष्ण गोखले। ११९ करने से अच्छा तो यह होता कि हा- साहय यह कह देते कि भारत- वर्ष में कौंसिल का यह काम है कि हाकिमों के हुक्मों को कानून बतादें। कौंसिल में तो बिल फेवल नाम मात्र के लिए नियम पालन करने के हित पेश किया जाता है। भारतवासियों को याद रखना चाहिए कि उन्हें इन यातों में दख़ल देने का कोई काम नहीं है। वह चाहे जितना चिलावें उनकी यातें कभी न सुनी जायगी । उनका भला इसी में है कि जो कुछ हम करें उसे वे घुप चाप मान लें"। देश में शान्ति कहाई करने से रहती है अथवा देशवासियों को प्रसन्न रखने से; इस बाबत आपने कहा:- “यह बात सच है कि, देश में अशान्ति फैल रही है परन्तु क्या सरकार समझती है कि ऐसे उग्र उपायों से प्रशान्ति दय जायगी ? नहीं, यह कभी नहीं दब सकती; वह और अधिक फैलेगी। गवर्मेंट से पैर का भाव फरीब करीब कहीं नहीं है और जहां है वहां उसके कारण स्पष्ट हैं। यदि सरकार चाहे तो उन्हें भी सहज में मिटा सकती है । परन्तु यही नाराजी और असन्तोष बढ़ते बढ़ते प्रजा के भावों को गवर्मेंट की ओर से बिलकुल यदल देंगे और उनके भाचरणों में भी अवश्य परिवर्तन होगा। 'भारत फी मजा अच्छे भाव से राज भक्त है'। यह बात लार्ड कर्जन ने आज से पांच वर्ष पहले दिल्ली दरबार में स्पष्ट कही थी। और यह बात सच्च भी है। परन्तु देश में शिक्षा का प्रचार बढ़ने से लोगों की अभिलापायें भी बढ़ रही हैं। अपनी अभिलापाओं को पूरा करने के लिए उद्योग करना राजविद्रोह नहीं है। लार्ड कर्जन की दुनीति और दुर्वाक्यों से ही देश में असन्तोप फैला । लार्ड कर्जन ने अपनी दुर्नीति द्वारा मूर्खता वश हो, लोगों के विरोध कारने पर भी वंग-भंग कर ही डाला। गवर्मेंट लोक मत की कुछ भी परवाह नहीं करती यह जान कर लोगों को चित्त बड़ा खिम्न हुआ और साथ ही देश में गरम दल का जन्म हुआ । उनका प्रभाव देश में खूब बढ़ा। परन्तु इस सबका कारण गवर्मेट की दुर्नीति ही है" । अन्त से प्रापने इस बिल का परिणाम बतलाते हुए कहा कि:- "यह बात सरकार को अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि
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