१०८ कांग्रेस-चरितावली ।
समझ गए। प्रतएव कुछ दिनों पश्चात भाप सम्बई प्रान्त की ओर से, प्रतिनिधि स्वरूप यड़े लाट महोदय की व्यवस्थापफ सभा के सभासद नियुक्त हुए। यहां थोड़े ही दिनों में प्रापने अच्छा नाम पैदा किया। आपने लाट सभा में निर्भय होकर स्वाधीनता पूर्वक एक सच्चे राज नीता के समान वक्तृतायें दी । नापने लाई कर्ज़न के कार्यों की शालोचना, बड़े कटु शुद्धों में को है। जय लाई कर्ज़न ने बंगालियों के बहुत कुछ रोने पीटने, चिल्लाने और हाय २ मचाने पर भी, बंगाल के दो टुकड़े कर दिए तय देश में प्रशान्ति. उत्पन्न हुई। लोगों को गवर्मेट के कार्यों से अश्रद्धा हो गई । सय लोग गवर्मेट' से निराश हो कर विलायती वस्तुओं का बहिष्कार करने लगे । ऐसे कठिन समय में, गोखले महोदय ने विलायत में जाकर भारत की दशा का यथार्थ चित्र विलायत बातियों के सम्मुख प्रगट किया। श्रापको माशा थी कि विलायत वासी अवश्य हमारे दुःख कहानी को सुन कर हमारे साथ सहानुभूति प्रगट करेंगे और भारतवर्ष में जो अत्याचार हो रहे हैं उन के द्वारा उनकी रोक टोक होगी। क्योंकि विलायत में सर्व- साधारण लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि गण ही वास्तव में राज्य कार्य करते हैं। यदि वे लोग चाहें तो भारत की दशा अवश्य सुधर सकती है । परन्तु नक्कार ख़ाने में तूती की नायाज़ कौन सुनता है ! विला- यतवासी भारत के मन से चाहे जितना पले पोसे हों, यहां के धन से उन्हें चाहे जितना सुख प्राप्त हो रहा हो परन्तु वहां-कुछ सज्जनों को छोड़ कर-भारत की दीन दशा पर कोई कभी विचारता नहीं करता। गोखले ही ने विलायत में, स्टेट सेक्रेटरी जान माले साहब से भी भेंट की परन्तु . वहां भी उनको कोरी बातों की सहानुभूति के अतिरिक्त, भारत की यथार्थ भलाई होने का ढङ्ग न दिखाई पड़ा । अन्त में आप स्वदेश लौट भाए । भारतवासियों में कृतज्ञता की मात्रा बहुत ही अधिक है। जय कभी कोई उनके हित का कुछ भी कार्य करता है वे उसका मान बढ़ाने और कृतज्ञता प्रकाशित करने के लिए तुरन्त खड़े हो जाते हैं । गोपले महोदय की देश मेवा से,प्रसन्न होकर लोगों ने प्रापत जातीय - १