गोपाल कृष्ण गोखले। १०७ तुरन्त रानडे महोदय की प्राज्ञा को स्वीकार कर लिया। रानडे ने प्रापको सार्वजनिक सभा में निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका का सहकारी सम्पादक नियत किया । बम इसी समय से गोखले महोदय राजनैतिक कार्यों में भाग लेने लगे और यही कार्य प्रापकी उन्नति का मूल कारण हुआ। आपको रानडे महोदय ने ही राजनैतिक क्षेत्र में लाकर खड़ा कर दिया । भारत में बहुत से ऐसे नवयुवक विद्वान हैं जिनको देश, का कार्य करने की उघ अभिलाषा है । परन्तु रानडे महोदय के समान उनको सहायता देकर अथवा हाथ पकड़ कर उठाने वाला नहीं मिलता। यही कारण है कि इस देश में कार्य करने वाले लोग, समय पड़ने पर नहीं मिलते । यदि रान महोदय गोखले को आगे न लाते तो आज देश को यह सौभाग्य प्राप्त न होता । इस धात को गोखले महोदय स्वयं स्वीकार करते हैं। आप रानडे का नाम बड़े भादर के साथ लेते हैं । उनको अपना गुरु मानते हैं। सन् १८९७ में, वेल्वी कमीशन नियत हुआ । उस समय कमीशन के सामने गवाही देने के लिए कुछ लोगों को विलायत भेजने की योजना की गई। बंगाल प्रान्त की ओर से बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, गदरारा 'प्रान्त की ओर से सुवरामनिया.अय्यर और यम्बई प्रान्त की ओर से दिनशा एडल जी वाचा का भेजा जाना निश्चय हुमा । साथ ही लोगों ने गोखले को भी इस कार्य में सहायता देने के लिए भेजा । जितने लोग.कमीशन के सम्मुख गवाही देने गए थे वे सब विद्वान होने के अतिरिक्त अनुभवी और वयोवृद्ध भी थे। परन्तु गोखले महोदप उन लोगों की अपेक्षा अल्पवयस्क होने पर भी इस बहुत बड़े कार्य को उत्तमता पूर्वक विलायत जाकर पूरा कर पाए। आप विलायत जाकर कमीशन के सामने कोरी गवाही देकर ही वापस लौट न पाए वरन् इङ्गलैंड के बड़े २ नगरों में घूम घूम. कर भारत की वर्तमान दशा पर कई एक व्याख्यान भी दिए । इङ्गलैंड में भापके साथ लोगों ने बहुत कुछ सहानुभूति प्रगट की। विलायत से स्वदेश लौट भाने पर लोगों को आपकी प्रतिभा का और भी अधिक परिचय मिला। लोग प्राप के अगाध सान और पांदित्य को -
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