“संसार की शान्ति" इन दो विषयों पर बहुत ही अच्छे व्याख्यान से प्रतिपादन किया । बहुत से विचारवान अंगरेज विद्वानों ने इस बात का स्वीकार भी किया । इस बाबत ढाका में मिस्टर घोष ने एक यशा विचार कैसे हलके हैं। उस समय के व्याख्यान से सरस्वती देवी सचमुर प्राय से प्रमन्न हुई मालूम पड़ती थी।यक्ति वाद द्वारा आपने विरो. धियों के मत का ख़ब ही अच्छा खंडन किया। सन् १८८४ में, शाप मिर यत गए थे। विलायत में प्रापको पहले से ही लोग एब अच्छी तर जानते थे। अपनी यक्तता द्वारा विलायत वासियों की सहानुभूति प्रापने पहले ही से सम्पादन कर ली थी। अतएय आपकी गहना यामेंट में मेम्बर होने के लिए सम्मेवार हुए। भाषणापति, उत्तम व्यत्र- सार, काम करने की उत्मकता और इनके द्वारा दीन, हीन भारत' मना का दुग पार्लियामेंट के सभ्य सभासदों का मालम होः इस विचार कर्तव्य का खूब अच्छा चित्र खींच कर लोगों के सामने बतलाया। आपके व्याख्यान से वहां के लोग बहुत ही प्रसन्न हुए। मार्च सन् १८८० में, घोष महोदय विलायत से कलकत्ते वापस पाए ! उस समय लोगों ने आपका भले प्रकार स्वागत किया। इसके बाद फिर आप विज्ञायत गए । और वहां से नवम्बर मास में बम्बई वापस पाए उस समय यन्नई वासियों ने प्रापका अच्छे प्रकार स्वागत करके पापक्षी खूप इज्जत की। तब से अबतक भाप इंग्लेण्ड और भारतवर्ष में राज- नैतिक भान्दोलन में शरीक होते हैं। जिस समय श्राप दुबारा विला. यत गए उस समय वहां "दक्षिण अफ्रिका में इंग्लैण्ड की नीति” नौर दिए । सन् १८८३ में, दलबर्ट बिल के समय, सारे भारतवर्ष में हलचल भर गई थी। परखार्थी, अविचारी भोर भलोर विचार के लोगों ने, बिस के विरुद्ध बहुत कुछ कोलाहल मचाया । यह वृषा का कोलाहल अंगरेज लोगों को शोभा नहीं देता इस बात का भारतवासियों ने प्रत्यक्ष रूप व्याख्यान दिया। उसमें प्रापने यह सिद्ध किया कि विरुद्ध पत वालों के विलायत गए। उस ममय विलायत में पार्लियामेंट थाला था । पार्लियामेंट में मेम्बर होने के उद्देश्य से उस धार प्राप दिला यहां लियरल पक्ष यालों में होने लगी। एक प्रान्त की ओरसे प्राप . का नया चुनाव होने पाली
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