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भाई की विदाई
 


युवक ने गृहिणी की सहायता से उसे बिस्तर पर लिटा दिया। उसने कहा बहिन, मैंने समझा था तुम वीर भाई की वीर बहिन हो, सब सुनोगी?

'मुझमें साहस है, पर मैं विवाह नहीं करूंगी! मां.....'

'नहीं बहिन, अगर तुम विवाह नहीं करोगी तो वे कल हंसते और गीत गाते हुए फांसी पर न जाएंगे। वे विरोध करेंगे और उन्हें घसीटकर ले जाया जाएगा। यही उनका निर्णय है, क्या यह ठीक होगा बहिन?'

'उनकी आज्ञा क्या है?' बालिका ने रोते हुए कहा।

'तुम्हारा विवाह ठीक-ठीक सकुशल समाप्त हुआ है यह मैं अपनी आंखों से देखूं और समय पर उन्हें सूचना दे दूं।'

'विवाह हो जाएगा, तुम देख लेना।' बालिका के चेहरे पर मुर्दनी छा रही थी; पर आँसू न थे।

'उनका एक और भी सन्देश है।'

'वह क्या है?'

'उन्होंने कहा है, अब तुम्हारी जैसी वीर-बालाओं को देश के लिए बलिदान होने की जरूरत है।'

'उनसे कहना, मैंने आज से अपने प्राण और शरीर देश के लिए दिए, पर मैं उनका पथ न ग्रहण कर सकूँगी।' 'बहिन, प्रत्येक प्रतिभाशाली मस्तिष्क अपने पथ का निर्माता है।'

'एक निवेदन और है।'

युवक ने बगल से नोटों का एक बण्डल निकाला और कहा-कुल दस हज़ार हैं। जब तक हममें से एक भी जीवित है, आज से इसी समय प्रतिवर्ष इतनी ही रकम आपको इसी स्थान पर मिलती रहेगी। आप चाहे भी जहां रहें, आज के दिन इस समय यहीं उपस्थित रहें। उसने नोट बालिका के आगे बढ़ाए।

बालिका ने कहा-जबतक तुममें से एक भी जीवित है यह रकम तुम मेरी तरफ से देश के किसी अच्छे काम में लगाते रहो। पर प्रतिज्ञा करो कि भविष्य में यह रकम किसी अनुचित मार्ग द्वारा न प्राप्त की जाएगी और किसी भी हिंसक उपयोग में न लाई जाएगी।

'आपकी आज्ञा का यथावत् पालन होगा। और आपको उसकी कैफियत मिल जाएगी।'