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भाई की विदाई
 


'वह सब मैं अर्ज करूंगा। आप देखते रहिए। वह तरकीब काम में लाऊं कि सांप मरे और लाठी भी न टूटे।'

'तब तो हम लोग यहीं से फैर करेंगे।'

'खुदा के लिए ऐसा न करना, हुजूर, इससे डाकुओं का कुछ न होगा। हमारी कम्बख्ती आ जावेगी।'

अंधेरा बहुत हो गया था। एकाएक घोड़ों की टाप की ध्वनि सुनाई दी।

‘कमालुद्दीन ने कहा-हुजूर, वे लोग पा रहे हैं। खबरदार रहिए, आप पेड़ पर चढ़ जाइए, हम लोग इस पुलिया में घुसे बैठते हैं। कमालुद्दीन और उसके साथी बिना विलम्व किए पुलिया में घुस बैठे। घोड़ों की टाप निकट सुनाई दे रही थी। दारोगाजी अकेले पेड़ के पास खड़े थे। एक साइकिल सर्र से निकल गई और क्षण-भर में ही सीटी की आवाज़ सुनाई दी।

दारोगाजी को पसीना आ गया। उन्होंने दबी ज़बान से कहा-कमालुद्दीन, मेरे जते का फीता खोलो-फीता-मैं पेड़ पर चढ़ नहीं सकता, जल्दी।

'हुजूर, खड़े मत रहिए-लेट जाइए-जल्दी, पेड़ पर चढ़िए।' एक साइकिल और सर से निकल गई और सीटी की आवाज गूंज गई।

दारोगाजी के शरीर से पनाला बह निकला। वे लेटकर खिसकते-खिसकते नाले के मुंह पर आए और बोले-कमालुद्दीन, मुझे भी यहीं छिपाओ, ओह साला जते का तस्मा खुला ही नहीं।

कमालद्दीन ने चुपचाप उनका मुंह भींच लिया। सवार पुल पर होकर गुज़र रहे थे। एक आदमी पुलिया पर खड़ा रह गया। कमालुद्दीन ने संकेत से दारोगाजी से कहा-उसे अगर गिरफ्तार किया जाए तो बहुत मतलब हल हो सकता है।

'चुप रहो, साले के हाथ में छ:नला पिस्तौल है।' दारोगाजी ने कांपते स्वर में कहा। और वे लोग दम रोककर मुर्दो से बाजी लगाकर पड़ गए।

नायक छत पर खड़ा था। उसके एक हाथ में सर्चलाइट और दूसरे में भरा हुआ रिवाल्वर था। दो और रिवाल्वर उसके जेबों में थे। वह प्रत्येक डाक की गतिविधि का निरीक्षण कर रहा था और साहसिक शब्दों में अंग्रेजी में प्रत्येक को आज्ञा दे रहा था। द्वार पर दो डाकू बन्दूक ऊंची किए मुस्तैद खड़े थे। गृहपति और गृहिणी बीच आंगन में चारपाई पर चुपचाप बैठे थे। उनके सिर पर पिस्तौल

क-५