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भाई की विदाई
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डालेंगे, क्यों?

'जी हां, हुजूर पुर्जे में तो यही लिखा है।'

'ठीक नौ बजे रात को ?'

'जी हां, सरकार।'

'अच्छी बात है, देख लिया जाएगा। तुम किसीसे गांव में ज़िक्र न करना,वरना वे भाग जाएंगे या आएंगे ही नहीं । मैं एकबारगी ही इन बदमाशों को गिरफ्तार किया चाहता हूं। समझे। तुम बेखटके घर जाकर बैठो।हम ठीक वक्त पर पहुंच जाएंगे।'

'हुजूर, मैं कहीं का न रहूंगा। गरीब बनिया हूं, सरकार मेरी जान-माल

'घबरा मत बूढ़े दारोगाजी ने डांटकर कहा--जा, सब ठीक हो जाएगा।

लाला ने दक्षिणा निकाली, दीवानजी की गद्दी के नीचे सरका दी, और कहा--मैं किसी लायक तो नहीं, पर जो बन पड़ेगा खिदमत से बाहर नहीं।

'बेफिकर रहो लाला।' मुंशी ने हंसती हुई आंखों से दारोगाजी को घूरते हुए कहा । लाला चला गया।

दारोगाजी ने पूछा--क्यों आसामी कैसा है ?

'लखपती है हुजूर, आसपास के गांवों में लेन-देन करता है, मगर है मनहूस,मक्खीचूस । आज चंडूल फंसा है।'

'अच्छा, देखें तो कितने की बोहनी हुई ?'

'यह देखिए हुजूर, मुंशी ने सौ रुपये का नोट गद्दी के नीचे से निकालकर दारोगाजी के सामने पेश कर दिया। दारोगाजी की पांचों घी में और सिर कढ़ाई में।

'कमालुद्दीन, तुम पुराने तजुर्बेकार हो, तुम किस-किसको ले चलना चाहते हो? तुम्हें तो चलना ही होगा।'

'आखिर आप करना क्या चाहते हैं हुजूर ?'

'इसके क्या मानी ? डाकुओं को गिरफ्तार करेंगे।'

'हुजूर, इस खयाल में न रहना, वे मामूली डाकू नहीं हैं।'

'तुम्हारी राय में वे जिन हैं ?

'जिन हैं या फरिश्ते यह तो खुदा जाने, मगर देवीसिंह आवाज़ पर गोली सर करता है, उसकी गोली खाली जाना जानती ही नहीं।'