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वेश्या
 


महाराज के कान में कहा-महाराज, मिस फास्टर ड्राइंग रूम में सरकार की प्रतीक्षा कर रही हैं।

महाराज उन्मत्त की भांति उधर लपके।

श्रावण की नन्हीं फुहारों से भरी हुई ठण्डी हवा के झकोरे, ग्रीष्म की ज्वलन्त ऊष्मा सहने के बाद कैसे प्रिय प्रतीत होते हैं, मन कैसा मत्त मयूर-सा नाचने लगता है, यह कैसे कहा जाए? नन्हीं फुहारों के साथ हवा के झोंके भीतर घुस रहे थे। बालिका एक मसनद के सहारे बढ़िया विलायती कालीन पर जरदोज़ी के काम की बहुत महीन और बहुमूल्य साड़ी पहने स्थिर बैठी थी। उसकी वह बाल-सुलभ चंचलता, जो मनुष्य का मन अपनी ओर हठात् खींच लेती थी, इस समय उसमें न थी। उसके सम्मुख एक वृद्ध पुरुष अपनी सफेद दाढ़ी को बीच में से चीरकर कानों पर चढ़ाए, बड़ा-सा सफेद साफा बांधे दुजानू बैठे थे। उनके हाथ में तम्बूरा था। वे एमन कल्याण के स्वरों को अपने कम्पित वृद्ध कण्ठ से निकाल, उंगली के आघात से तन्तुवाद्य पर घोषित कर रहे थे। तत्क्षण ही बालिका को उनका अनुकरण करना था। वह उसके मस्तिष्क पर भारी भार था। बालिका उन सुन्दर सुखद झोंकों से ज़रा भी विचलित न होकर वृद्ध के मुख से निकलते और तम्बूरे के तारों से टकराते स्वरों को मनोयोग से सुन रही थी। वृद्ध ने तारों के पास कान झुकाकर कहा-बोलो तो बेटी! तुम्हारा गला तो बहुत साफ है। देखो मध्यम दोनों लगेंगे; समझीं, यह एमन के स्वर हैं।

बालिका का भीत-कम्पित स्वर, उसकी माधुरी मूर्ति और कोमल कण्ठ उस अस्तंगत सूर्य की बरसाती प्रभा में मिलकर गज़ब कर गया। वृद्ध पुरुष तम्बूरे पर झुककर मूर्छना के साथ ही वाह! कर गए।

उसी कक्ष में एक गद्देदार आरामकुर्सी पर श्रीमन्त महाराजाधिराज एक खिड़की से आती उन्मुक्त वायु का पूरा स्वाद ले रहे थे। बढ़िया फ्रांस की बनी सुगन्धित सिगरेट को एक ओर फेंक वे उठकर बालिका को घूरने लगे। बालिका ने उस ओर देखा। बीच ही में उसका तार टूट गया। वह चुप हो गई। महाराज ने आकर उसके दोनों हाथ पकड़कर उठा लिया। उन्होंने कहा-उस्ताद जी, बस अब आज और नहीं। आप जाइए। वृद्ध पुरुष झटपट उठकर अभिवादन करके चल दिए। उन्हें इस कठिन अवस्था में भी बालिका ने मस्तक झुकाकर प्रणाम