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वेश्या
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'हुजूर !'

'इसे लायो।'

'जो हुक्म ।'

'मैं घूमता हुआ चला जाऊंगा। तुम गाड़ी ले जाओ।'

'जो हुक्म!'

'दस हज़ार?'

'जी हां सरकार ! वह लाहौर की मशहूर तवायफ मुमताज़ बेगम की लड़की है। बुढ़िया बड़ी धाख निकली। उसने हुजूर को देख और पहचान लिया था।बस पैर फैला गई। बड़ी मुश्किल से सौदा पटा है।'

'वे लोग यहां कब आ जाएंगे?'

'कल दस बजे।'

'गाड़ी ग्यारह बजे चलेगी। सिवा दोनों मां-बेटियों के उनका तीसरा कोई आदमी साथ न रहने पाएगा। इसकी हिदायत कर दी है न?'

“जी हां हुजूर, ऐसा ही होगा।'

“और एक बात, छोटी रानी को इस वारदात की खबर न होने पाए ?'

'बहुत अच्छा सरकार।'

एक रिज़र्व कम्पार्टमेण्ट उनके लिए गाड़ी में लगा रहेगा। मगर मैं आज रात को होटल में उन लोगों से मुलाकात करूंगा । खाना भी उन्हींके साथ खाऊंगा। एक रिजर्व कमरे और स्पेशल खाने का बन्दोवस्त भी कर लो--तुम खुदही चले जाओ-फोन में मत कहो, जिससे कानों-कान किसीको खबर न हो। ठीक नौ बजे, समझे ?'

'जी हुजूर !'

"और सुनो, आज ग्यारह बजे रात को मिस फास्टर उसी जगह आएगी न?'

"जरूर!'

'तब होटल से लौटकर उधर चलना होगा। अब तुम जा सकते हो।'

ये भद्र पुरुष थे कौन? पाठकों को सब कुछ नहीं बताया जा सकता। वे एक विस्तृत राज्य के सुजन अधिपति, श्रीमन्त महाराजाधिराज राजराजेश्वर