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बड़नककी
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डिप्टी साहब ने मकान में घुसकर देखा, बड़नककी मकान में टुकड़े-टुकड़े हुई पड़ी है। खून में घर डूब रहा है। नौकर-चाकर-दाई आदि बंधे खड़े हैं और नजफखां का पता नहीं।

आज तक वह बेपता है।

बड़नककी के कुछ श्रीमान मित्र अभी जिन्दा हैं। वे जब अपनी जवानी के उन रसीले गुप्त दिनों की याद करते हैं तो उनकी सफेद मूंछों में हास्य की रेखा दौड़ जाती है और जब वे लाखन कोठरी में सड़क के नुक्कड़ पर पहुंचते हैं, जहां बड़नककी की वह रहस्यमयी हवेली थी, तब एक ठण्डी सांस छोड़ते हैं। नजफखां सुना गया, अजमेर में ही उसके बाद शान्त जीवन व्यतीत करता रहा और हाल ही में उसकी मृत्यु हुई। वह दरगाह शरीफ के पीछे एक गली में तस्वीह लिए चुपचाप पड़ा रहता था।