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बड़नककी
 


भेज दिया गया।

हीरे के उस हार को, जो सेठजी ने उपहार भेजा था, बड़नककी पहनकर कद्देआदम आईने में अपने ढलते यौवन को निहारकर सेठजी की कुछ मधुर स्मृतियों में लीन हो रही थी। एक दूसरे बड़े रईस की उसके यहां आज आमद थी। वह सजधजकर बैठी थी। दासी सफाई कर रही थी, करीने से सामान सजाया जा रहा था। एक व्यक्ति धीरे-धीरे चुपचाप ऊपर चढ़ गया। बड़नककी को अपने ध्यान में कुछ सुध न थी। जब उसने एकाएक गर्दन उठाकर उसके भयानक मुख को देखा तो वह सहम गई।

आगन्तुक ने कहा-बी साहबा, घबराओ नहीं, उम्मीद है मुझे पहचान गई होंगी। नजफखां पठान हूं। यहां के अमीरों से मैं खिदमत ले चुका हूं, अब उन्हें सताना नहीं चाहता। अब मैं आपकी खिदमत में आया हूं, दस हज़ार रुपयों की सख्त ज़रूरत है। कल रात को आठ बजे लूणिया मसाणावाले पीपल के नीचे दक्षिण की तरफ गड़ा हुआ मिले। वरना खैर न होगी। अच्छी तरह समझ लो, लूणिया मसाणा के पीपल के नीचे दक्षिण की तरफ रात को आठ बजे तक समझी। मैं तुम्हें हरगिज़ तकलीफ न देता। पर क्या करूं, बात ही ऐसी आ पड़ी है। अब ज्यादा बातचीत की फुर्सत नहीं। मैं जा रहा हूं। यह कहकर वह बिना उत्तर पाए ही गद-गद करके जीने से उतर गया। बड़नककी सहमी रह गई।

नजफखां पठान कौन था। वास्तव में यह कोई न जानता था, पर उसकी धाक बड़ी थी। छोटे-छोटे सभी अमीर उसका लोहा मानते थे। वह बहुत डाके वगैरह न डालता था और न चोरी करता था। जब उसे ज़रूरत पड़ती, वह किसी अमीर से कहता-देखो जी, दस या पांच हजार रुपये उस दरख्त के नीचे गाड़ आना। अमुक समय तक। यदि वहां रुपये न हुए तो याद रखो, जहन्नुम रसीद कर दिए जाओगे।

अगर ठीक समय पर वहां रुपया गड़ा मिल गया तो ठीक, वरना अगले ही दिन वह रईस सचमुच जहन्नुम रसीद कर दिया जाता था। या तो उसका कहीं पता ही न लगता था या पलंग पर सिर धड़ से अलग, या कहीं जंगल में कुचली खोपड़ी, फटा सीना, कटा पेट कुत्ते और कौवों के जमघट में पड़ा मिलता। ये नक्शे