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बड़नककी
 


'मेरे पास एक ही कमला नहीं है।'

क्षण-भर में वसन्ती ने कमरे में प्रवेश किया। एक अपरिचित अधेड़ व्यक्ति को देख वह ठिठक रही। ओस के भीगे हुए गुलाब की कान्ति के समान लज्जा की लाली और सौन्दर्य के निखार का साथ-साथ उद्गम देखकर कामुक सेठ सकते की हालत में हो गए।

बड़नककी ने कहा-बेटी संकोच न करो। अभी तो मैं तुमसे इनका जिक्र कर रही थी। आपको ऊपर ले जाओ, खातिर-तवाजा करो।

बालिका चुपचाप खड़ी रही। इसी अधेड़ पुरुष की रूपरेखा क्या उस तरह बयान की गई थी? पर अभागिन वेश्या की लड़की को यह सोचने का क्या अधिकार? उसने एक ही क्षण में देख लिया कि यह पुरुष न सुन्दर है, न सुडौल, बल्कि एक चालीस-साला अधेड़ मोटा बदरंग आदमी है।

उसके होंठ घृणा से सिकुड़ गए। सेठजी ने उस सौन्दर्य-मूर्ति को पाकर मानो आसमान छुआ। वे बड़े चाव से उठे और उसका हाथ पकड़ ऊपर ले चले। बालिका मन्त्रबद्ध की तरह चुपचाप चल दी।

अंधेरी रात में सिर्फ तारों की परछाईं थी। उसमें काले वस्त्र से शरीर को ढके एक व्यक्ति टेढ़ी-मेढ़ी गलियों को पार करता तेज़ी से जा रहा था। एक विशाल अट्टालिका पर जाकर उसने ऊंघते हुए द्वारपाल का कंधा पकड़कर हिलाकर कहा-सुनो, ज़रा देखो, सेठजी सोते हैं या जाग रहे हैं। सोते हों तो भी उन्हें जगा दो, काम बहुत ज़रूरी है।

द्वारपाल ने हड़बड़ाकर सावधान होकर कहा--पर तुम हो कौन?

आगन्तुक ने मुख पर का प्रावरण उतार डाला। टिमटिमाते दीपक के धुंधले प्रकाश में द्वारपाल ने देखा। वह अकचका गया और शीघ्र ही भीतर ड्योढ़ियों में चला गया।

सेठजी की उम्र साठ को पार कर गई थी। वे घबड़ाकर बोले-बड़नककी, तुम इस वक्त?

'दिल न माना, सेठजी, बुढ़ापे में दिल ज्यादा बेकाबू हो जाता है।'

'हंसी रहने दो, खैर तो है?'

'खैर होती तो इस वक्त मुझे पाना पड़ता?'