लो। मैं तुम्हारे पांव दबा दूंगा।
मेला सो गया। सिखरा पांव दबाता रहा। थोड़ी देर में मेला जागा। आंखों पर पानी के छींटे दिए। शस्त्र बांधे।
सिखरा ने पूछा—युद्ध किस तरह करोगे?
'सवार होकर।'
वह अपने घोड़े पर सवार हुआ। चाबुक फटकारा, तो घोड़ा हवा हो गया। सिखरा देखता ही रह गया।
उसने घोड़ा साध दिया। पर मेले को न पहुंच सका। सिखरे के घोड़े के साथ जो बछेरी आई थी वह भागती-भागती मेला के घोड़े से सौ कदम आगे जाकर पीछे फिरी। तब सिखरा बछेरी को पकड़कर उसपर चढ़ बैठा और मेला को जा लिया।
सामने आकर मेला को ललकारा और बर्छा फेंका। बर्खा उसकी छाती के पार हो गया। मेला वहीं ढेर हो गया।
चारण यह कहकर अपनी दाढ़ी सहलाने लगे। सुननेवाले सांस रोककर सुन रहे थे। चारण ने एक बार आकाश की ओर दृष्टि की। तरुणों ने कहा—फिर, फिर?
इतने ही में ऊदा भी वहां आ पहुंचा। मेला को मरा पड़ा देखकर उसने भाई से कहा—भाई, इसका अग्निसंस्कार करना चाहिए। दोनों भाइयों ने दाह किया। दाहकर्म से निवृत्त होकर ऊदा ने भाई को तो घर वापस भेजा और स्वयं मेला की पगड़ी लेकर उसकी कोटड़ी गया और पुकारकर कहा, ठाकरां, मेलोजी काम आए हैं। उनका पाग लो। मेरे बड़े भाई सिखरा ने उन्हें मारा है। दाग दे दिया गया है।
मेला का पुत्र बाहर आया। उसने ऊदा से जुहार किया और कहा—ठाकरां, हमारे-तुम्हारे कोई बैर नहीं है। पिता ने जैसा किया, उसका फल पाया। अब भीतर पधारिए।
ऊदा क्षण-भर घोड़े पर अड़ा खड़ा रहा। फिर उसने कहा—सिखरा की बेटी हमने मेलोजी के बेटे को दी। देव उठने पर ब्राह्मण के हाथ तिलक भेजेंगे। विवाह करने को शीघ्र पधारना।
उसने सब ठाकुरौं को जुहार किया और घोड़े को एड़ लगाई।
यथा समय विवाह हो गया और चिरकाल बाद यह बैर मिटा।
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क-१६