को भी दिया। फिर उसने गड़रियों से कहा-मैं बीकमपुर जाता हूं।
रात को वह सिखरा के गांव पहुंचा। कुत्ते दौड़कर पीछे पड़े, तो बकरे की हड्डियां जो वह बांध लाया था, उनके आगे फेंक दीं। कुत्ते उन्हें चबाने लगे। और वह घर में घुसकर जहां ऊदा सोता था, वहां जा पहुंचा। उसने शस्त्रों की वादियां उसके बिछौने के नीचे काटकर रख दी, और सिखरा की स्त्री की चोटी काटकर वापस लौट गया।
'जब स्त्री जगी, तो उसने देखा-सिर पर चोटी ही गायब! उसने शोर मचाया कि मेला आया और मेरी चोटी काटकर ले गया। सिखरा हड़बड़ाकर उठा, पर, उसने सब शस्त्रों के बन्धन. भी कटे पाए। वह बी हाथ में लेकर अक्लख घोड़े पर सवार होकर दौड़ा।
लौटते हुए मेला ने कुत्तों को काट डाला था। इस भागादौड़ी में उसका अमल का पोता (अफीम की थैली) भी वहीं गिर गया था। सिखरा ने उसे उठा लिया।
ऊदा की घोड़ी की बछेड़ी भी सिखरा के साथ लग ली थी। मेला रात ही रात में चलकर प्रभात होते-होते कोढणों के तालाब पर पहुंचा। अमल-पानी का समय था। पोता संभाला तो नहीं पाया। तब घोड़े से उतरकर घासिया डालकर सो रहा। सिखरा भी आ पहुंचा। उसने घोड़े पर निगाह पड़ते ही पहचान लिया कि सिखरा है। पर, यहां निश्चित सोता क्यों है? पास जाकर कपड़ा खींचकर जगाया-क्या नाम है? कौन हो?
'मेरा नाम मेला-सपेटा है।'
'तो मेलाजी, चौरासी को छेड़ा है। जगह-जगह टोलियां खड़ी हैं। ऊदा जैसे राजपूत को खिझाकर निश्शंक कैसे सोते हो?'
'आपका नाम क्या है?'
'मेरा नाम सिखरा है।'
मेला उठकर बैठ गया। उसने कहा-इस समय मेरा तो अमल उतर रहा है।
'तो उठो अमल लो।'
'मेरा तो अमल का पोता कहीं रास्ते में गिर गया। मैं अपने ही पोते की अमल खाता हूं।'
सिखरा ने वह पोता निकालकर मेला के हाथ में दे दिया। छागुल में जल भर लाया। अमल-पानी कराया और फिर कहा-मेलाजी, अब थोड़ा आराम कर