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आंके-बांके राजपूत
 

पर, चारण ने डाढ़ी पर हाथ फेरकर कहा-कहानी सुनो! यह बात महोबे के राठौर राव मालाजी ने सुनी, तो उन्होंने कहा-उस राजपूत ने खाने के बदले बहू त्याग दी, बड़ा खराब काम किया। ऐसी राजपूतानी के बच्चे तो बड़े वीर, बवंडर योद्धा हो सकते हैं। शेरों के भी कत्ले चीर डालेंगे। रावल मालाजी के यहां उस समय बहेलवे का राणा ईंदा उगमसी चाकरी करता था। उसने रावल के मंह से यह बात सुनकर आदमी भेजकर कोटेचे को कहला भेजा कि तुम अपनी बेटी मुझे दे दो। कोटेच ने स्वीकार किया। उसने ईंदा उगमसी को बेटी दे दी। नई रानी के साथ ईदा मज़े में रहने लगा। उससे कोटेचे रानी के सात बेटे हुए।

एक तरुण ने फिर हंसकर कहा-बापजी, उन सातों बेटों के नाम क्या थे?

'अरे बेटों के बाप, कहानी सुन! जिनकी बात आगे आएगी, उनका नाम भी सुन लेना।' उन्होंने कहानी आगे बढ़ाई:

उन सात बेटों में एक था ऊदा। जब वह सयाना हुआ तब रावल मालाजी की चाकरी में महोबे में रहने लगा। उन दिनों एक बाघ गोपाल की पहाड़ी पर बड़ा उत्पात मचाता था। राजपूत बारी-बारी से उस पहाड़ी की चौकी पर भेजे जाते थे। एक दिन ऊदा की भी बारी आई। उसने जाकर पहाड़ी को घेरकर बाघ को पकड़ लिया और बांधकर ले आया तथा रावलजी को भेंट कर दिया। रावलजीने प्रसन्न होकर बाघ उसे ही दे दिया। उसने बाघ के गले में एक घंटी बांधकर छोड़ दिया और ऊदा ने सबसे कह दिया कि उसे कोई न मारे। जो कोई मारेगा, उससे मेरी शत्रुता होगी। बाघ स्वतंत्रता से फिरने और नुकसान करने लगा। एक बार घूमता-घूमता वह भादराजण जा निकला। वहा सिंहल राजपूतों ने उसे मार डाला। इससे ईंदों और सिघलों में बैर बंध गया। दोनों परिवारों में युद्ध हुआ। पचीस सिंघल मारे गए। भादराजण और चौरासी का मार्ग चलना बंद हो गया। ऊदा का विवाह ईहड़ सोलंकी की बेटी से हुआ था। वह सिंघलों की चाकरी करता था। ऊदा की पत्नी भी ब्याह के बाद सात बरस तक पति के घर न आई, क्योंकि, मार्ग बन्द था। यदि किसी पक्ष का कोई व्यक्ति उस मार्ग पर चलता पाया जाता, तो दूसरे पक्षवाले उसे मार डालते।

एक दिन सिखरा के बालसीसर पर गोठ हुई। सब इंदे वहां जमा हुए, बकरे काटे गए, खूब नाशा-पत्ता जमा। वहां किसीने हंसी में पूछा-ऊदाजी, कभी भादराजण भी जानोगे?