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मास्टर साहब
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'खूब हंसेंगी।'

'फिर मैं रूठ जाऊंगी।'

'नहीं, नहीं, रानी बिटिया नहीं रूठा करती।'

'तो वह मुझे छोड़कर चली क्यों गईं?'

मास्टरजी ने टप से एक बूंद आंसू गिराया, और पुत्री की दृष्टि बचाकर दूसरा पोंछ डाला। तभी बाहर खिड़की के पास किसीके धम्म से गिरने की आवाज़ आई।

मास्टरजी ने चौककर देखा, गुनगुनाकर कहा-क्या गिरा? क्या हुआ?

वे उठकर बाहर गए, सड़क पर दूर खम्भे पर टिमटिमाती लालटेन के प्रकाश में देखा, कोई काली-काली चीज़ खिड़की के पास पड़ी है। पास जाकर देखा, कोई स्त्री है। निकट से देखा, बेहोश है। मुंह पर लालटेन का प्रकाश डाला, मालूम हुआ भामा है।

मास्टर साहब एकदम व्यस्त हो उठे। उन्होंने सहायता के लिए इधर-उधर देखा, कोई न था, सन्नाटा था। उन्होंने दोनों बांहों में भामा को उठाया और घर के भीतर ले आए। उसे चरपाई पर लिटा दिया।

बालिका ने भय-मिश्रित दृष्टि से मूछिता माता को देखा-कुछ समझ न सकी। उसने पिता की तरफ देखा।

'तेरी अम्मा आ गई बिटिया, बीमार है यह।' फिर भामा की नाक पर हाथ रखकर देखा, और कहा-उस कोने में दूध रखा है। ला तो ज़रा।

दूध के दो-चार चम्मच कण्ठ में उतरने पर भामा ने आखें खोलीं। एक बार उसने आंखें फाड़कर घर को देखा, पति को देखा, पुत्री को देखा, और वह चीख मारकर फिर बेहोश हो गई।

मास्टरजी ने नब्ज़ देखी, कम्बल उसके ऊपर डाला। ध्यान से देखा, शरीर सूखकर कांटा हो गया है, चेहरे पर लाल-काले बड़े-बड़े दाग हैं, आंखें गढ़े में धंस गई हैं। सामने के दो दांत टूट गए हैं, आधे बाल सफेद हो गए हैं। कपड़े गन्दे, चिथड़े। पैर कीचड़ और गन्दगी में लथपथ और" और "और वे दोनों हाथों से माथा पकड़कर बैठ गए।

प्रभा ने भयभीत होकर कहा-क्या हुआ बाबूजी?

'कुछ नहीं बिटिया!' उन्होंने एक गहरी सांस ली। भामा को अच्छी तरह कम्बल उढ़ा दिया।