का हुक्म है कि आप लोगों के लिए राज्य की सेवा का सुअवसर पाया है। दुश्मन ने देश को चारों ओर से घेर रखा है। राणा ने आपकी सेवा चाही है। अपना धर्म पालन करो।
भीलों के सरदार ने अपने विकराल मुंह को फाड़कर उच्च स्वर से कहा-राणाजी के लिए हमारा तन-मन हाज़िर है।
उसी रात्रि में, तारों की परछाईं में, दो हज़ार भील वीर चुपचाप उस राजपूत सैनिक का अनुसरण कर रहे थे। सबके हाथ में धनुष-बाण थे। वे सब अरावती की चोटियों पर रातोंरात चढ़ गए। उन्होंने अपने मोर्चे जमाए, पत्थरों के बड़े-बड़े ढेले एकत्र किए, और छिपकर बैठ गए।
दोपहर की चमकती धूप में भील रमणियां मूंगे की कण्ठी कण्ठ में पहने, भारी-भारी घांघरे का काछा कसे लूनी के तीर से पानी ला रही थीं। कोई जल में किलोल कर रही थी। लूनी का क्षीण कलेवर उन्हें देखकर कल-कल कर रहा था। एक युवती मिट्टी के घड़े को पानी में डाले उसमें जल के घुसने का कौतुक देख रही थी, और हंस रही थी। दो बालिकाएं नदी-किनारे चांदी-सी चमकती बालू में खेल रही थीं। अकस्मात् एक तीर सनसनाता हुआ पाया। और बालू में खेलती एक बालिका की अंतड़ियों को चीरता हुआ चला गया। बालिका के मुख से एक अस्फुट ध्वनि निकली, और वह रेत में कुछ देर छटपटाकर ठंडी हो गई।
नदी-किनारे खड़ी भील बालाओं ने आश्चर्य और रोष-भरी दृष्टि से नदी के दूसरे तट की ओर देखा। दो मुगल खड़े हंस रहे थे। एक युवती.चिल्लाती हुई दौड़कर पेड़ों के झुरमुट में गायब हो गई। गांव में एक बूढ़ा रोगी भील था, जो इस समय राणा के रण-निमंत्रण पर न जा सका था। उसका नाम शेरा था। वह अपने विशाल धनुष और तीन-चार बाणों के साथ बाहर आया। उसने पेड़ की आड़ में खड़े होकर दूसरे तट पर खड़े एक मुगल को लक्ष्य करके तीर फेंका। वह तीर वज्रपात की भांति मुगल सैनिक के हलक को चीरता हुमा कंठ में अटक रहा। सैनिक चीत्कार करके धरती पर गिर पड़ा। नदी-तट की सब स्त्रियां अपने घड़े वहीं छोड़कर गांव में भाग आईं।
दो युवतियां जोर-जोर से ढोल बजा रही थीं। शेरा एक वृक्ष की आड़ से