पहुंचा, और आक्रमण हुआ।
'निश्चित रहो, खज़ाना वहां कभी न पहुंचेगा। जामो तानाजी को भेज दो, और स्वयं यह पता लगायो कि खजाना आज दो पहर रात तक कहां पहुंचेगा।'
'जो आज्ञा।' कहकर चर ने प्रस्थान किया।
क्षण-भर बाद तानाजी ने प्रवेश कर कहा-महाराज की क्या आज्ञा है?
'क्या वे सब हथियार मिल गए?'
'जी महाराज!'
'तोपें कैसी हैं?'
'अत्युत्तम, वे सभी बुजियों पर चढ़ा दी गई।'
'बंदूकें?'
'सब नई और उत्तम हैं। सब बंदूकें, बर्छ और तलवारें भी बांट दी गई हैं।'
'तुम्हारे पास कुल कितने घुड़सवार हैं?'
'सिर्फ पांच सौ।'
'शेष।'
'शेष सब अशिक्षित किसानों की भीड़ है। उन्हें शस्त्र अवश्य मिल गए हैं, परन्तु उन्हें चलाना कदाचित् वे नहीं जानते।'
'बहुत ठीक, बीजापुर-शाह का खज़ाना सिंहगढ़ जा रहा है। वह अवश्य वहां न पहुंचकर यहां आना चाहिए। परन्तु उसके साथ पांच हज़ार चुने हुए सवार हैं। तुम अभी पांच सौ सैनिक लेकर उनपर धावा बोल दो।'
'जो आज्ञा।'
'परन्तु युद्ध न करना, जैसे बने, उन्हें आगे बढ़ने में बाधा देना।'
'जो आज्ञा।'
'मैं प्रभात होते-होते समस्त पैदल सेनासहित तुमसे मिल जाऊंगा।'
'जो आज्ञा।'
तानाजी ने तत्काल कूच कर दिया।
दुपहरी की तीव्र सूर्य-किरणों में धूल उड़ती देखकर यवन सैनिक सजग हो गए। उनके सरदार ने ललकारकर व्यूह-रचना की, और खच्चरों को खास इन्तबाम में रखकर मोर्चेबन्दी पर डट गए। कूच रोक दिया गया।