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प्यार
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के दास थे।

हरम का प्रत्नेक कक्ष अतिशय भव्य होता था, और ऐश्वर्य और विलास की सामग्री से भरपूर रहता था। वहां बादशाह की चहेतियां यद्यपि बन्दिनी का जीवन व्यतीत करती थीं, परंतु वे बड़े ठाट-बाट से मलिकाओं की भांति रहती थीं। हीरा, मोती उनके लिए कंकड़-पत्थर के समान थे। लेकिन यह सब ठाट-बाट तभी तक रहता था, जब तक उनका रूप-यौवन उभार पर होता था। रूप-यौवन के ढलान पर उनका जादू खत्म हो जाता था, और उनकी कोई पूछ न रह जाती थी।

मेहरुन्निसा आगरा पहुंची। लेकिन बादशाह ने उससे मुलाकात नहीं की। उसने उसे हरम के एक साधारण कक्ष में रहने की आज्ञा दी, और उसे अपनी माता की सेवा में नौकर रख दिया।

मेहर यद्यपि बादशाह से अत्यन्त रुष्ट थी, पर उसे उससे ऐसे निष्ठुर व्यवहार की आशा न थी। उसके भावुक और गर्वीले हृदय को इससे ठेस पहुंची। उसे वे दिन भूले नहीं थे, जब बादशाह शाहज़ादा सलीम था, और उसने उसके प्रति प्रेम में अन्धे होकर कितनी विकलता प्रकट की थी। वह यह भी जानती थी कि उसी को प्राप्त करने के लिए बादशाह ने उसके प्यारे पति को मरवा डाला, और उसे सेना भेजकर आगरा बुलाया है। लेकिन आगरा आने पर उसके साथ ऐसा व्यवहार, उसकी ऐसी उपेक्षा!

उसने बादशाह की आज्ञा मानकर राजमाता की सेविका होना स्वीकार कर लिया। पर माहवारी मुशाहरा लेने से इनकार कर दिया। उसके पास काफी धन था। उसमें से बहुत-सा उसने बांदियों को बांट दिया। और स्वयं एक प्रतिष्ठित विधवा की भांति रहने लगी। वह अपने कक्ष की बारादरी में, जो राजमहल के बाग के सामने पड़ता था, कीमती ईरानी कालीन पर जरदोज़ी की मसनद पर बैठकर हुक्का पीती। उसकी जवाहिरात से जड़ी हुई सोने की मुनाल उसके सुन्दर मुख में लगी रहती।

उसने चुनकर सुन्दरीदासियां अपनी सेवा में रखी थीं। वे हर समय उसकी सेवा में उपस्थित रहतीं। पर वह बहुत कम उनसे सेवा लेती। वह उन्हें सखियों की भांति खूब ठाट से सजा-धजाकर रखती। यद्यपि वह स्वयं सादा वेश में रहती, पर अपनी दासियों को हीरे-मोती और जड़ाऊ पोशाक में सजाए रखती थी। वह अरब से लाए हुए बहुमूल्य इत्र-गुलाब का खास शौक रखती थी। उसके चारों