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प्यार
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महक भर रही थी। एकाध पक्षी जगकर कभी-कदा बोल उठता था। मरजाना ने कहा-अब क्या होगा बीबी?

'तुझे अभी जाना होगा।'

'कहां?'

'काटवा।'

'काटवा किसलिए?'

'महारानी कल्याणी के पास जा, और उन्हें संग ले आ। ले, खर्च के लिए दस अशर्फी। एक पालकी ले आना।'

'लेकिन जाऊंगी कैसे? महल तो हथियारवन्द तातारी बांदियों ने घेर रखा रमणी कुछ देर सोचती रही। फिर उसने दस्तक दी। एक तातारी बांदी हाथ बांधकर आ खड़ी हुई। उसने कोर्निश करके पूछा-क्या हुक्म है, बेगम साहबा?

'रहमतखां सिपहसालार को अभी हाज़िर कर।'

बांदी सिर झुकाकर चली गई।

थोड़ी देर में वृद्ध रहमतखां ने ड्योढ़ी पर आकर सलाम किया। रमणी ने परदे की आड़ ही से कहा-एक कैदी के साथ इस कदर अदब-आदाब की ज़रूरत नहीं। मैंने एक बात जानने के लिए तुम्हें तकलीफ दी है।

'मैं आपका गुलाम हूं। हुक्म दीजिए।'

'मेरी बांदी एक जगह जा रही है। किसी सिपाही को उसके साथ भेज दो। वहां से मेरी एक सहेली आएंगी। खबरदार, उनकी पालकी की जांच कोई न करे।'

'यह तो मुमकिन नहीं है, बेगम साहबा।'

रमणी की त्योरियों में बल पड़ गए। उसने कहा-क्या मुमकिन नहीं है

'बगैर जांच-पड़ताल के कोई पालकी भीतर नहीं आ सकती।'

'बादशाह ने क्या तुम्हें ऐसा भी हुक्म दिया है?'

'जी नहीं। लेकिन हिफाज़त के खयाल से हमें मजबूरन यह करना पड़ता है।'

'लेकिन तुमपर हमारे हर हुक्म की तामील लाजिम है। क्या तुम्हें बादशाह ने ऐसा हुक्म नहीं दिया है?'

'दिया है, बेगम साहबा।'