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कलकत्ते में एक रात
 

उसने एक तीखे कटाक्ष का वार किया। मैंने देखा और समझा-वही है। परन्तु इसका क्या कारण हो सकता है कि यह अद्भुत स्त्री इस प्रकार भिखारिणी बनकर लोगों को फांसकर ले आती है। मैंने उससे पूछा-तब वहां आप ही थीं?

'कहां?'

'बाज़ार में और मेरे साथ भी?'

'वाह, वहां मैं क्यों होने लगी?' वह हंस दी। उसकी प्रगल्भता बढ़ रही थी और वह अधिकाधिक मेरे निकट आ रही थी।

उसने निकट पाकर स्निग्ध स्वर में कहा-आप शायद मेरी दासी की बात कह रहे हैं।

'यदि वह आपकी दासी थी तो क्या आप कृपा कर मुझपर यह भेद खोल सकेंगी कि किस कारण आप इस प्रकार जाल में फांस-फांसकर लोगों को घर में बुलाती हैं?'

मेरी बात सुनकर वह एकदम उदास हो गई।

उसने आंखों में आंसू भरकर कहा-आपको यदि कुछ ज्यादा कष्ट हुआ हो, तो आप जा सकते हैं । मैंने तो आपको एक धर्मात्मा आदमी समझकर इस आशा से कष्ट दिया था कि एक दुखिया अबला का कष्ट आप दूर करेंगे, परन्तु मर्द, जैसे सब हैं, वैसे ही आप भी हैं।

वह सिसकियां लेने लगी। मैं बहुत लज्जित हुआ। वास्तव में मैंने बहुत रूखी बात कह दी थी।

मैंने कहा-आपको इतना क्या दुःख है? मुझसे कहिए, तो मैं अपनी शक्ति भर उसे दूर करने का उपाय करूं।

'इसपर मुझे विश्वास कैसे हो?' उसने आंसुओं से भीगी हुई पलकों को मेरी ओर उठाकर कहा।

उस दृष्टि से मैं विचलित हो गया। मैंने कहा-यद्यपि मेरी आदत नहीं, फिर भी मैं कसम खाने को तैयार हूं।

उसके होंठों पर मधुर मुस्कराहट फैल गई। उसने कहा अब मुझे विश्वास हो गया इतने ही में वही बूढ़ा एक ट्रे में शराब की एक बोतल, गिलास और कुछ नम-

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