मित्रगण चौकन्ने हो गए। मिस्टर चक्रवर्ती बोल उठे-क्या मैं इस घटना का वर्णन सुन सकता हूं?
डाक्टर ने उदास होकर कहा-जाने दीजिए मिस्टर चक्रवर्ती, उस दारुण घटना को भूल जाना ही अच्छा है, खासकर जब उसका सम्बन्ध मेरी इस परम प्यारी घड़ी से है।
परन्तु मिस्टर चक्रवर्ती नहीं माने, उन्होंने कहा-यह तो अत्यन्त कौतूहल की बात मालूम होती है। यदि कष्ट न हो तो कृपा कर अवश्य सुनाइए। यह ज़रूर कोई असाधारण घटना रही होगी, तभी उससे आप ऐसे विचलित हो गए हैं।
'असाधारण तो है ही!' कहकर कुछ देर डाक्टर चुप रहे। फिर उन्होंने एकएक करके प्रत्येक मित्र के मुख पर दृष्टि डाली। सब कोई सन्नाटा बांधे डाक्टर के मंह की ओर देख रहे थे। सबके मुख पर से उनकी दृष्टि हटकर घड़ी पर अटक गई। वे बड़ी देर तक एकटक घड़ी को देखते रहे, फिर एक ठण्डी सांस लेकर बोले आपका ऐसा ही आग्रह है, तो सुनिए!
धीरे-धीरे डाक्टर ने कहना शुरू किया-चौदह साल पुरानी बात है। सूबेदार कर्नल ठाकुर शार्दूलसिंह मेरे बड़े मुरब्बी और पुराने दोस्त थे। वे महाराज के रिश्तेदारों में होते थे। उनका रियासत में बड़ा नाम और दरबार में प्रतिष्ठा थी। उनकी अपनी एक अच्छी जागीर भी थी। वह देखिए, सामने जो लाल हवेली चमक रही है, वह उन्हींकी है। बड़े ठाट और रुझाब के आदमी थे, अपने ठाकुरपने का उन्हें बड़ा घमण्ड था। उनके बाप-दादों ने मराठों की लड़ाई में कैसी-कैसी वीरता दिखाई थी-वे सब बड़ी दिलचस्पी से सुनाया करते थे। वे बहुत कम लोगों से मिलते थे, सिर्फ मुझीपर उनकी भारी कृपादृष्टि थी। जब भी वे अवकाश पाते, या बैठते थे। बहुधा शिकार को साथ ले जाते थे। और हफ्ते में एक बार तो बिना उनके यहां भोजन किए जान छूटती ही न थी। उनके परिवार में मैं ही इलाज किया करता था। मैं तो मित्रता का नाता निबाहना चाहता था और उनसे कुछ नहीं लेना चाहता था, पर वे बिना दिए कभी न रहते थे। वे हमेशा मुझे अपनी औकात और मेरे मिहनताने से अधिक देते रहे। मेरे ऊपर उन्होंने और भी बहुत एहसान किए थे, यहां तक कि रियासत में मेरी नौकरी उन्होंने लगवाई थी और महाराज आलीजाह की कृपादष्टि भी उन्हींकी बदौलत मुझपर थी।