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वासवदत्ता
 

राजा के पकड़े जाने का यह समाचार जब कौशाम्बी में पहुंचा तो वहां शोक छा गया। प्रजा उत्तेजित हो गई और सेना ने क्रुद्ध होकर अवन्ती पर चढ़ाई करने की तैयारी कर ली। परन्तु बुद्धिमान मन्त्री रुमण्वान ने सबको समझा-बुझाकर ठण्डा किया और कहा–यदि हम चढ़ाई करें और चण्डमहासेन हमारे महाराज को मार डाले तो बुरी बात होगी। फिर चण्डमहासेन बड़ा बलशाली राजा है। वहां युक्ति से काम करना होगा। इसके बाद सब मंत्रियों ने सलाह पक्की कर महामंत्री यौगन्धरायण को उज्जयिनी भेजा। महामन्त्री यौगन्धरायण ने अपने साथ अपने विश्वस्त पुरुष वसन्तक को साथ लेकर उज्जयिनी को प्रस्थान किया।

राजा चण्डमहासेन ने महाराज उदयन का बड़ा सत्कार किया और अन्तःपुर में ले जाकर अपनी कन्या वासवदत्ता उसे सौंपकर कहा कि इसे आप गन्धर्व-विद्या सिखाइए। और किसी बात का खेद मत कीजिए-इससे आपका कल्याण होगा। वासवदत्ता को देखते ही राजा ने आपा खो दिया। उसका सम्पूर्ण क्रोध जाता रहा। उधर कामदेव के समान उदयन को देखकर वासवदत्ता के नेत्र और मन उदयन में उलझ गए। नेत्र तो लज्जा से हट गए पर मन वहीं रम गया।

राजा उदयन वासवदत्ता को नृत्य-संगीत सिखाता हुआ गन्धर्वशाला में रहने लगा। उस चित्त को प्रसन्न करनेवाली वासवदत्ता के सम्मुख वीणा बजा-बजाकर राजा गया करता और वासवदत्ता उस बन्धन में पड़े हुए राजा की यत्न से सेवा करके उसे अपने स्नेह-बन्धन में कसकर बांधने लगी। इस प्रकार परस्पर स्नेह के बंधन में कसकर बंधते हुए, वे दोनों संगीत और वीणावादन का आनन्द लेते रहे। दोनों को अब एक घड़ी-पल भी एक-दूसरे के बिना चैन न आता था।

मन्त्रिवर यौगन्धरायण बड़ी सावधानी से वसन्तक के साथ विन्ध्याचल के वन में घुसा। वहां उदयन का मित्र म्लेच्छराज पुलिन्दक रहता था, उससे उसने कहा-आप अपनी सेनासमेत तैयार रहिए, हम राजा को छुड़ाकर इसी मार्ग से लौटेंगे।

उज्जयिनी में आकर यौगन्धरायण ने महाकालेश्वर के श्मशान में रहनेवाले योगेश्वर नामक ब्रह्म-राक्षस से मित्रता कर ली और उसकी सहायता से एक बूढ़ेकूबड़े, मतवाले और गंजे आदमी का रूप धारण कर लिया। इस बूढ़े, गंजे, कुबड़े और पागल आदमी को देखकर सब नगर-निवासी हंसने और तंग करने लगे। अपने

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