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मृत्यु-चुम्बन
 

भयभीत हो पीछे हट गए। कुण्डनी नाग के नेत्रों से नेत्र मिला भाव-नृत्य करने लगी।

असुर ने कहा—वह उस सर्प को लेकर क्या कर रही है?

'यह मागधी नागपत्नी है। अब सर्वप्रथम नाग चुंबन करेगा। पीछे जिसे मृत्युकामना हो, वह उसका चुंबन करे।'

'तो, नाग-चुंबन होने दो।'

'अच्छा, तो उस मानुषी के नागपति के नाम पर सब कोई एक-एक पात्र मद्य पिए।'

'पियो, सब कोई।'

एक बार सब असुरों ने मद्य-भाण्डों में मुंह लगा दिया। उसी समय कुण्डनी ने नागदंश लिया। फिर नाग को थैली में रखा। उसके मस्तक पर स्वेद-बिन्दु झलक आए और वह विष के वेग से लहराने लगी। उस समय उसके नृत्य की अलौकिक छटा प्रदर्शित हुई। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह हवा में तैर रही हो। उसके अधर जैसे मद-निमन्त्रण दे रहे हों।

शम्बर ने चिल्लाकर कहा—चुंबन करो, चुंबन करो।

एक असुर-तरुण ने कुण्डनी को आलिंगन-पाश में कसकर चुंबन किया। वह तुरन्त बिजली से मारे हुए प्राणी की भांति निष्प्रोण होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। कुण्डनी ने उधर भ्रपात नहीं किया। दूसरे तरुण की ओर मुस्कराकर देखा। उसने भी चुंबन किया और वही दशा हुई। असुरों में अब सोचने-विचारने की शक्ति नहीं रह गई थी। वे पागल की भांति चुंबन ले-लेकर पटापट मरने लगे। शम्बर निरंतर मद्य पी रहा था। असुरों के इस प्रकार आश्चर्यजनक रीति से मरने पर उसे 'विश्वास नहीं हो रहा था। प्रत्येक असुर के चुंबन लेने के बाद निष्प्राण होकर गिरने पर कुण्डनी मोहक हास्य से शम्बर की ओर ऐसे देखती कि वह समझ ही न पाता कि उसके तरुण मर रहे हैं या मूछित हो रहे हैं। सोमप्रभ बराबर मद्य के पात्र पर 'पात्र शम्बर के गले में उतार रहा था।

अब कुण्डनी एक-एक असुर के पास जा-जाकर चुंबन-निवेदन करने लगी। चुंबन ले-लेकर वे प्राण गंवाते गए। उस मोहनी मूर्ति के चुंबन-निवेदन को अस्वीकार करने की सामर्थ्य मद्य-विमोहित असुरों में न थी। उसने बलात् वृद्ध असुरमन्त्रियों को मालिंगनपाश में बांधकर उनके होंठों पर चुंबन अंकित किए और वे