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मृत्यु-चुम्बन
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'असुर से भय करने ही को क्या कुंडनी बनी है?'

'तुम्हारा इरादा क्या है?'

'इरादा क्या?

शम्बर या तो हमारे मैत्री-संदेश को स्वीकार करे, नहीं तो आज सब असुरोंसहित मरे।'

'उसे कौन मारेगा?'

'क्यों?

'कुण्डनी।'

'परन्तु किस प्रकार?'

'यह समय पर देखना।'

'पर हमारे शस्त्र छिन गए हैं।'

'तो क्या हुआ, बुद्धि तो है।'

'तो कुण्डनी, आज की मुहिम की तुम्हीं सेनानायिका रहीं।'

'ऐसा ही सही, चलो।'

वह बाहर आई और असुर-सरदार से अधिकारपूर्ण स्वर में कहा—सैनिकों से कह, बाजा और मशाल लेकर आगे—आगे चलें।'

सरदार ने आज्ञापालन किया।

और वह धुंघरू बजाती, विद्युत्प्रभा की साक्षात् मूर्ति-सी, मार्ग को प्रकाशित करती हुई असुरपुरी के राजमार्ग पर आगे बढ़ी। सैकड़ों असुर पीछे थे।

सोम ने कहा-मायाविनी, इस समय तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे तुम्ही इस असुर-निकेतन की स्वामिनी हो।

'और सम्पूर्ण असुरों के प्राणों की भी।' उसने कुटिल मुस्कान से हास्य किया।

भोज की बड़ी भारी तैयारी की गई थी। एक बड़े भारी अग्निकुंड में समूचा भैंसा भूना जा रहा था। असुर-तरुण हाथों में भाले लिए खड़े थे। असुर-तरुणियां नृत्यगान को तैयार थीं। कुंडनी असम साहस कर असुरराज के सिंहासन पर जा बैठी और सोम को पुकारकर उसने कहा—असुरों से कहो सोम, सुरा—भाण्ड यहां ले आएं। सोम के कहने पर असुर भाण्ड वहां ले गए। इसी समय बाजे बज उठे। असुरों ने भयभीत होकर देखा—शम्बर खूब श्रृंगार किए ठाठ से आ रहा है।

सोम ने कहा—कुंडनी, असुरराज का सिंहासन छोड़ दे।