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मृत्यु-चुम्बन
 

'किन्तु यह नियम शत्रु के लिए है, मित्र के लिए नहीं। प्रतापी मगध-सम्राट बिम्बसार असुरराज से मैत्री-स्थापन किया चाहते हैं।'

'मागध बिम्बसार दनुकुल का था। अब वह मनुकुल में चला गया है, तथा मनुष्य-धर्म का पालन कर रहा है, इसीसे वह मेरा मित्र नहीं है। मनुकुल सदैव देवकुल का मित्र होता है, दनुकुल का नहीं।'

'परन्तु मागध बिम्बसार दनुकुल-भूषण सामर्थ्यवान शम्बर की मित्रता चाहता है। मैं उसका मैत्री-संदेश लाया हं।'

'इसका क्या प्रमाण है?'

'यही कि मैं एकाकी आया हूं, विजयिनी मागध सैन्य नहीं लाया।'

शम्बर ने कुंडनी की ओर उंगली उठाकर कहा-वह सुन्दरी कौन है?

'वह भी मागधी है।'

'तब सैनिप बिम्बसार ऐसी सौ सुन्दरियां मुझे दे तो मैं बिम्बसार का मित्र हूं।'

'यह हो सकता है, पर मागधी तरुणियां विद्युत्प्रभ होती हैं। उन्हें भोगने की सामर्थ्य असुरों में नहीं है। उन्हें छूते ही असुरों की मृत्यु हो जाएगी। वह असुरों के लिए अगम्य है।'

'अच्छा, यहां एक मागधी तरुणी है ही, इसीपर असुरों की परीक्षा ली जाएगी। अभी तू असुरपुरी में हमारा अतिथि रह।'

उसने मांग में मोती गूंथे थे। उसकी सघन घनश्याम केशराशि मनोहर ढंग से उसके चांदी के समान उज्ज्वल मस्तक पर शोभायमान थी। लम्बी चोटी नागिन के समान चरण-चुम्बन कर रही थी। बिल्वस्तनों को रक्त कौशेय से बांधकर ऊपर से उसने नीलमणि की कंचुकी पहनी थी। कमर में लाल दुकल और उसपर बड़ेबड़े पन्नों की कसी पेटी उसकी क्षीण कटि की ही नहीं-पीन नितम्बों और सुन्दर उरोजों के सौन्दर्य की वृद्धि कर रही थी। उसने पैरों में नूपुर पहने थे, जिनकी झंकार उसके प्रत्येक पाद-विक्षेप करने से हृदय को हिलाती थी।

सोम ने कहा-कुण्डनी, क्या आज असुरों को मोहने के लिए साक्षात् मोहनी अवतरित हुई है?

'हुई तो है, असुरों का भाग्य।'

'तुम्हें असुरों का भय नहीं?'