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कलंगा दुर्ग
 


लाल गुलबन्द। और उसके पीछे कुछ घायल, कुछ बेघायल योद्धा बंदूकें कंधों पर और नंगी तलवारें हाथों में लिए हुए। उनके पीछे स्त्रियां, जिनकी पीठ पर बच्चे कसकर बंधे हुए और हाथों में नंगी खुखरियां। कुल सत्तर प्राणी थे। सब प्यास से बेताब।

बलभद्र का शरीर सीधा, चेहरा हंसता हुआ, मूंछे नोकदार, ऊपर को चढी हईं। सिपाही की नपी-तुली चाल चलता हुआ वह अंग्रेजी सेना में धंसा चला गया। उसके पीछे उसके सत्तर साथी-स्त्री-पुरुष। किसी का साहस उन्हें रोकने का न हुआ। बलभद्रसिंह अंग्रेज़ी सेना के बीच से रास्ता काटता हुआ साथियों सहित नालापानी के झरनों पर जा पहुंचा। सबने जी भरकर झरने का स्वच्छ ठण्डा और ताजा पानी पिया। फिर उसने अंग्रेज़ी जनरल की ओर मुंह मोड़ा। उसी तरह बंदूक उसके कंधे पर थी और हाथ में नंगी तलवार। उसने चिल्लाकर कहा कलंगा दुर्ग अजेय है। अब मैं स्वेच्छा से उसे छोड़ता हूं।

और वह देखते ही देखते अपने साथियों सहित पहाड़ियों में गुम हो गया। अंग्रेज़ जनरल और सेना स्तब्ध खड़ी देखती रह गई।

जब अंग्रेज़ दुर्ग में पहुंचे तो वहां मर्दो, औरतों और बच्चों की लाशों के सिवा कुछ न था। ये उन वीरों के अवशेष थे जिन्होंने एक डिवीज़न सेना को एक महीने से भी अधिक रोके रखा था, और वहां के संग्राम में जनरल जिलेप्सी को मिलाकर अंग्रेजों के इकत्तीस अफसर और ७१८ सिपाही काम आए थे।

अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर उसे ज़मींदोज कर दिया। इस काम में उन्हें केवल कुछ घण्टे लगे।

इस समय उस स्थान पर साल वृक्षों का घना जंगल है। और रीचपाना नदी के किनारे एक छोटा-सा स्मारक बना हुआ है, जिसपर खुदा है हमारे वीर शत्रु बलभद्रसिंह और उसके वीर गोरखों की स्मृति में सम्मानोपहार.......।