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अभाव
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रहे थे, परन्तु डाक्टर साहब विमूढ़-से बैठे चुपचाप आकाश को देख रहे थे। मानो एकाएक चौंककर वे उठे। उन्होंने मुट्ठी भींचकर कहा-ओह, कहां है वह पंजाबकेसरी! आज पंजाब के शेर उसके बिना यों कुचले जा रहे हैं। आज यदि वह होता!!

डाक्टर साहब उन्मत्त होकर उठ बैठे और उन्होंने अपने उन घृणित साहबी ठाट के वस्त्रों को उतारकर फेंक दिया, फिर जेब से दियासलाई निकालकर उनमें आग लगा दी, धीरे-धीरे वह घर की सभी वस्तुओं को ला-लाकर आग में डालने लगे। लोग अवाक् होकर चुपचाप यह होली-कांड देख रहे थे। अन्त में धीर गम्भीर स्वर में उन्होंने कहा:

देश के पुरुषों का सम्मान संगठन, देशभक्ति और स्वात्माभिमान की कल्पना से होगा। यह बढ़िया विदेशी ठाट और काट के वस्त्र पहनना और मोर के पर खोंसकर कौए की तरह हास्यास्पद बनना अत्यन्त पाप-कर्म है। मैं आज से यह सब त्यागता हूं।

बम्बई में हलचल मच गई। पंजाब का शेर महायुद्ध के बाद सात वर्ष में फिर अपने देश में पा रहा है। आज फिर देश उसकी दहाड़ से गूंजेगा। आज पंजाब के आंसू पूछेंगे। आज न जाने क्या होगा। देश-भर में धम मच गई थी। देश-भर के महान पुरुष उस सिंह-नर को देखने को दौड़ रहे थे। बाजारों में जयजयकार के शब्द बोले जा रहे थे। सभा-स्थान में तिल धरने को जगह न थी। महामना तिलक व्यासपीठ पर विराजमान थे। पंजाब केसरी ने उठकर गर्जना शुरू की। जनसमूह हिलोरें मारने लगा।

'मेरे देश की बहनो और भाइयो! मैंने विदेश में सुना है कि पंजाब ने जलियानवाले बाग में मार खाई है। और वे पंजाबी शेर जिन्होंने फ्रांस के मैदान में अपनी संगीनों की नोक पर इंग्लैंड की नाक बचाई थी, अपने ही घर के द्वार पर कुत्ते की तरह शिकार किए गए हैं। मैंने यह भी सुना है कि वह हत्यारा डायर अभी तक अपने स्थान पर आनन्द उठा रहा है। यदि कोई पंजाबी बच्चा यहां है तो वह मुझे बताए कि उसके लिए उसने क्या किया है?'

सभा में सन्नाटा था। सूई गिरने का शब्द भी होता। उन्होंने आवाज़ ऊंची