कठिन कुठार धार धारिबे की धीरताहि,
बीरता बिदित ताकी देखिए चहतु हौं ।
तुलसी समाज राज तजि सो बिराज आजु,
गाज्यो मृगराज गजराज ज्यों गहतु हौं
छोनी में न छाँड्यो छप्यौ छोनिप को छो ना छोटो,
छोनिप-छपन बाँको विरुद बहतु हौं ।।
(माधुर्य--प्रसाद)
नूपुर कंकन किंकिन करतल मंजुल मुरली
ताल मृदंग उपंग चंग एक सुर जुरली ।
मृदुल मधुर टंकार, ताल झंकार मिली धुनि,
मधुर जंत्र की तार भँवर गुंजार रली पुनि ।
तैसिय मृदुपद पटकनि चटकनि कर तारन की,
लटकनि मटकनि झलकनि कल कुंडल हारन की ।
साँवरे पिय के संग नृतत यों ब्रज की बाला,
जनु घन-मंडल-मंजुल खेलति दामिनिमाला ॥
पद-औचित्य
सीस-मुकुट, कटि काछिनी, कर-मुरली उरमाल ।
इहिं बानक मो मन सदा, बसौ बिहारीलाल ॥
इस वर्णन के लिए कृष्ण के नामों में ‘बिहारीलाल’ नाम सब से अधिक उपयुक्त है ।
करौ कुबत जगु, कुटिलता तजों न दीन दयाल।
दुखी होहुगे सरल हिय बसत, त्रिभंगीलाल ।।