श्रवण मकर-कुडल लसत, मुख सुखमा एकत्र ।
शशि समीप सोहत मनो श्रवण मकर नक्षत्रं ॥
भाल बिसाल ललित लटकन वर, बालदसा के चिकुर सोहाये ।
मनु दोउ गुरु सनि कुज आगे करि ससिहि मिलन तम के गन आये ।।
चाणक्य (कूटनीति) परिचय
जाकी धन धरती लई ताहि न लीजै संग ।
जो संग राखे ही बनै तो करि डारु अपंग ।।
तौ करि डारु अपंग फेर फरकै सो न कीजै ।
कपट रूप बतराय तासु को मन हर लीजै ।
कह गिरधर कविराय खुटक जै है नहि वाकी।
कोटि दिलासा देब, लई धन धरती जाकी ।
तेरह मंडल मंडित भूतल भूपति जो क्रम ही क्रम साधै ।
कैसेहु ताकहँ शत्रु न मित्र सुकेशवदास उदास न बाधै ।
शत्रु समीप, परे तेहि मित्र से, तासु परे जो उदास कै जोवै ।
विग्रह संधिन दाननि सिंधु लौं लै चहुँ ओरनि तौ सुख सोवै॥
मोक्षोपायपरिचय
मुक्तिपुरी दरबार के, चारि चतुर प्रतिहार ।
साधुन को सतसंग, सम, अरु संतोष, विचार ।
चारि में एकह जो अपनावै ।
तो तुम पै प्रभु आवन पावै ।।