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बातें गंभीर अर्थवाली कहे । सर्वत्र रहस्य, असल तत्त्व का अन्वेषण करता रहे । दूसरा कवि जब तक अपना काव्य न सुनावे तब तक उसमें दोषो-द्भावन न करे--सुनाने पर जो यथार्थ हो सो कह देवे । कवि के लिए घर साफ़ सुथरा--सब ऋतु के अनुकूल स्थान, नाना वृक्ष-मूल-लतादि से सुशोभित बगीचा, क्रीडापर्वत, दीर्घिका पुष्करिणी, नहरें, क्यारियाँ, मयूर, मृग, सारस, चक्रवाक, हंस, चकोर, क्रौंच, कुरर, शुक, सारिका--गर्मी का प्रतीकार, फव्वारे, लता, कुंज, झूला इत्यादि अपेक्षित हैं । काव्य-रचना से थक जाने पर--मन की ग्लानि दूर करने के लिए आज्ञाकारी मूक सेवक सहित या एकदम निर्जन स्थान चाहिए । परिचारक अपभ्रश भाषा-प्रवीण और परिचारिकाएँ मागधीभाषा-प्रवीण हों । कवि की स्त्रियों को प्राकृत तथा संस्कृत भाषा जाननी चाहिए । इनके मित्र सर्व भाषाज्ञाता हों । कवि को स्वयं सर्व-भाषा-कुशल शीघ्रवाक्, सुन्दर अक्षर लिखनेवाला, इशारा समझनेवाला, नानालिपि का ज्ञाता होना चाहिए । उसके घर में कौन सी भाषा लोग बोलेंगे सो उसी की आज्ञा पर निर्भर होगा । जैसे सुना जाता है मगध में राजा शिशुनाग ने यह नियम कर दिया था कि उनके अन्तःपुर में ट, ठ, ड, ढ, ऋ, ष, स, ह, इन आठ वर्णों का उच्चारण कोई न करे । शूरसेन के राजा कुविन्द ने भी कटुसंयुक्त अक्षर के उच्चारण का प्रतिषेध कर दिया था । कुन्तलदेश में राजा सातवाहन की आज्ञा थी कि उनके अन्तःपुर में केवल प्राकृत भाषा बोली जाय । उज्जयिनी में राजा साहसांक की आज्ञा थी कि उनके अन्तःपुर में केवल संस्कृत बोली जाय ।

पेटी, पाटी, खड़िया, बन्द करने के लायक दावात, रोशनाई, क़लम, ताडीपत्र या भूर्जपत्र, तालपत्र, लोकंटक, साफ़ मजी हुई दीवार,--इतनी चीजें सतत कवि के सन्निहित रहनी चाहिए ।

सबसे पहले कवि को अपनी योग्यता का विचार कर लेना चाहिए--मेरा संस्कार कैसा है, किस भाषा में काव्य करने की शक्ति मुझमें है, जनता की रुचि किस ओर है, यहाँ के लोगों ने किस तरह की किस सभा में शिक्षा पाई है, किधर किसका मन लगता है, यह सब विचार करके तब किस भाषा में काव्य करेंगे इसका निर्णय करना होगा । पर यह सब भाषा का

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