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(२) 'दिव्यमानुष'—स्वर्गीय होते हुए मर्त्यलोक-संबंधी। इसकेचार प्रभेद हैं—

स्वर्गीय पुरुष का मर्त्यलोक में आना तथा मर्त्य पुरुष का स्वर्ग जाना—जैसे शिशपालवध में नारद का द्वारका आना, अर्जुन का इन्द्र के पास जाना। स्वर्गीय व्यक्ति मर्त्य हो जाय तथा मर्त्य स्वर्गीय हो जाय—जैसे श्रीकृष्ण का अवतार और गंगातट पर मरे हुए मनुष्यों का विमान पर स्वर्ग जाना। स्वर्गीय वृत्तांत की कल्पना—जैसे दो गंधर्वो के वार्तालाप की कल्पना। किसी व्यक्ति का स्वर्गीय भाव उनके प्रभाव से आविर्भूत हुआ—जैसे श्रीकृष्ण ने यशोदा की गोद में सोये हुए स्वप्न में कुछ ऐसी बातें कहीं जिनसे उनका दिव्य-भाव सूचित हुआ।

(३) मर्त्य (मानुष) मनुष्यों की घरेलू घटनाओं का वर्णन।

(४) पातालीय—नागलोक में तक्षकादि नागों के चरित्र का वर्णन।

(५) मर्त्यपातालीय—कर्णार्जुन युद्ध में कर्ण के शर में प्रविष्ट नाग जब दोबारा उनके पास आया और कहा फिर भी मैं तुम्हारे शर में प्रवेश करता हूँ तुम उस शर को चलाओ। तब कर्ण (मनुष्य) ने नाग (पातालीय) से कहा कि 'यह समझ रक्खो कि कर्ण दोबारा एक बाण को नहीं चलाता—तुम देखो मैं अभी मामूली मर्त्यलोकसम्बन्धी शरों ही से अर्जुन को मार गिराता हूँ।'

(६) दिव्यपातालीय—शिवजी (दिव्य) के शरीर पर नागराज (पातालीय) का वर्णन।

(७) स्वर्गमर्त्यपातालीय—जनमेजय के सर्पयज्ञ के संबंध में आस्तीक ऋषि (मनुष्य), तक्षकनाग (पातालीय) और इन्द्र (स्वर्गीय) का वर्णन।



साहित्य का विषय अनन्त तथा निस्सीम है । पर दो प्रभेद में सभी अन्तर्गत होते हैं—'विचारितसुस्थ' तथा 'अविचारितरमणीय'। विचारितसुस्थ' दल में सभी शास्त्र हैं और 'अविचारितरमणीय' दल में काव्य—ऐसा उद्भट का सिद्धांत है। पर तत्त्व यह है कि शास्त्र हो या काव्य, निबन्धन में वही उपयोगी होगा जो जैसा प्रतिभासित (ज्ञात) होगा।

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