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मरु सुदेश मोहन महा, देखहु सकल सभाग ।
अमल कमल कुल कलित जहँ, पूरण सलिल तड़ाग ।
[ केशबदास द्वारा दोष का उदाहरण
निपात-औचित्य
चितु दै देखि चकोर त्यों, तीजैं भजै न भूख ।
चिनगी चुगै अंगार की, चुगै कि चन्द्रमयूख ॥
[बिहारी-सतसई]
यहाँ ‘कि’ का उपयोग उचित हुआ है ।
निपात-अनौचित्य
राम राम जब कोप करयो जू, लोक लोक भय भूरि भरयो जू ।
वामदेव तब आपुन आये, रामदेव दोऊ समुझाये ।।
[केशव-रामचंद्रिका]
यहाँ ‘जू’ का प्रयोग केवल छन्द की पूर्ति के लिए हुआ है ।
काल-औचित्य
कोउ कहै अहो स्याम चहत मारन जो ऐसे,
गिरि गोबरधन धारि करी रक्षा तुम कैसे ?
ब्याल, अनल, विष ज्वाल ते राखि लई सब ठौर,
अब बिरहानल दहत हौ हँसि हँसि नन्दकिसोर
चोरि चित ले गये ।
[नन्ददास——भ्रमरगीत]
कृष्ण के वियोग में उद्धव के सन्मुख गोपियों के इस वचन में भूत तथा वर्तमान काल का प्रयोग उचित हुआ है ।
काल-विरोध दोष इस काल से भिन्न प्रकार का है। केशव ने कविप्रिया में इसका उदाहरण निम्नलिखित दिया है:——
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