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पापिन को अग संग, अगना अनंग बस,
अपयश युत सुत, चित हानिये।
मूढता, बुढाई, व्याधि, दारिद, झुठाई आधि,
यह ही नरक नर लोकन बखानिये॥३४॥

'केशवदास' कहते हैं कि बुरीचाल की सवारी ( घोडा आदि ) चोर सेवक, चचल चित्त, मूर्ख मित्र, सूम स्वामी, दूसरे के घर भोजन तथा निवास, बुरे गाव मे वास, वर्षा मे विदेश मे रहना, पापियो का साथ, कामवश स्त्री, अपकीर्ति देनेवाला पुत्र, मन-चाही वस्तु की हानि, मूर्खता, बुढापा, शारीरिक रोग, दरिद्रता, झूठ और मानसिक रोग, इन्हीं को इस नर-लोक ससार का नरक बतलाया गया है। अर्थात् ये नरक जैसी दुखदायी होती हैं।

१४---मंदगत वर्णन

दोहा

कुलतिय, हासबिलास, बुध, काम, क्रोध, मन मानि।
शनि गुरु, सारस, हस, गज, तियगति, मंद बखानि॥३५॥

कुलवती स्त्री, हास-विलास, बुद्धिमान, काम, क्रोध, शनि, वृहस्पति, सारस पक्षी, हंस, हाथी और स्त्री की चाल-इन्हे मंदगति कहा गया है।

उदाहरण

कवित्त

कोमल विमल मन, विमला सी सखी साथ,
कमला ज्यों लीन्हे हाथ कमल सनाल को।
नूपुर की धुनि सुनि, भौरे कल हंसनि के,
चौंकि चौकि परै चारु चेटुवा मराल को।
कचन के भार, कुच भारन, सकुच भार,
लचकि लचकि जाति कटि-तट बाल को।
हरे हरे बोलति विलोकति हँसति हरे,
हरे हरे चलति हरति मन लाल कौ॥३६॥