यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ७० )

'केशवदास' कहते है कि पण्डित और बुद्धिमान पुत्र, पति प्रेम परायणा स्त्री, सब गुणो का ज्ञान, सब लोगो से मान-प्राप्ति, दान देना, हृदय मे दया धारण करना, रोगो से वियोग, भोगो से सयोग, सत्य कहना, ससार मे यश प्राप्ति और युक्ति---ये वस्तुए सुख देने वाली होती है यह बात चारो वेद मे कही गई है।

१३--दुखदवर्णन

दोहा

पाप पराजय, झूठ, हठ, शठता, मूरख मित्त।
ब्राह्मण नेगी, रूप बिन, असहनशील चरित्त॥३१॥
आधि, व्याधि अपमान, ऋण, परघर भोजन बास।
कन्या संतति, वृद्धता, वरषाकाल प्रवास॥३२॥
कुजन, कुस्वामी, कुगति हय, कुपुरनिवास कुनारि।
परवश, दारिद, आदिदै, अरि, दुखदानि विचारि॥३३॥

पाप, पराजय ( हार ), झूठ, हठ, शठता, मूर्ख मित्र, नेगी ब्राह्मण कुरूपता, असहनशील चरित्र, आधि ( मानसिक रोग ), व्याधि( शारीरिक रोग, अपमान, ऋण, दूसरे घर मे भोजन तथा वास, कन्या सन्तान, बुढापा, वर्षा काल में विदेश मे रहना, बुरा या दुष्ट मनुष्य बुरा स्वामी, बुरी चाल का घोडा, बुरे नगर मे रहना, बुरी स्त्री, पराधीनता, दरिद्रता और बैर आदि को को दु.ख देने वाला समझिए।

उदाहरण

कवित्त

बाहन कुचाल, चोर चाकर, चपल चित,
मित्त मतिहीन, सूम स्वामी उर आनिये।
परघर भोजन निवास, वास कुपुरन,
'केशौदास' वरषा प्रवास दुख दानिये।