उदाहरण
कवित्त
लोचन त्रिलोचन को केशव विलोकि विधि,
पावक के कुड सी त्रिकोण कीन्ही धरणी।
सीधी है सुधारि पृथु परम पुनीत नृप,
करि करि पूरण दसहुँ दिस करणी।
ज्वाला सो जगत जग मगत सुभग मेरु,
जाकी ज्योति होति लोक लोक मन हरणी।
थिर चर जीव हवि होमियत युग-युग,
होता होत काल न जुगुति जात वरणी॥१२॥
'केशवदास' कहते है कि श्रीशिव जी के तीनो नेत्र देखकर श्रीब्रह्माजी ने 'अग्निकुड, जैसा तिकोनी भारतभूमि बनाई। उस पृथ्वी को परम पवित्र राजा पृथु ने अपनी करनी से सुधारा। उसमे सुमेरु पर्वत की लोक-लोकान्तरी का मन हरने वाली ज्योति बनाई है। पृथ्वी रूपी इस हविकुड मे युग युगान्तरो से चर अचर जीव होता काल के द्वारा होमे जा रहे हैं, कुछ कहा नहीं जा सकता।
५---सुवृत्तवर्णन
दोहा
वृत्त, बेल भनि गुच्छ अरु, ककुदकंध रथअंग
कुभि-कुंभ, कुच, अंड, भनि, कंदुक, कलश सुरंग॥१३॥
बेल, गुच्छा, बैल के कन्धे का ऊपरी भाग, रथ के अग, हाथी के मस्तक के ऊपरी गोल भाग, कुच, अडा, गेद और कलश ये वृत्त (गोल) कहे जाते है।