अलक ( लटे ) अलिक ( ललाट ), भू ( भौं ) कुचिका ( बास की टहनी ), किंशुक, शुकमुख ( तोते का मुख ) अहि ( साँप ), कटाक्ष ( तिरछी दृष्टि ), धनु (धनुष ), बीजुरी ( बिजली ), ककन भग्न ( ककरण का टूटा हुआ टुकडा ), बाल ( धुघराले ), चद्रिका एकगहना, बाल शशि ( द्वितीया का चन्द्रमा हरिनख ( सिंह का नख ), सूकर दन्त ( सुअर का दाँत ) और कुद्दाल ( कुल्हाडी ) आदि की भाँति अनन्त वस्तुएँ कुटिल कही गई है।
उदाहरण (सवैया)
भोर जगी वृषभानुसुता, अलसी बिलसी निशि कुजविहारी।
केशव पोंछति अचलछोरनि पीक सुलीक गई मिटिकारी॥
बकलगे कुचबीच नखक्षत देखिभई दृग दूनी लजारी।
मानौ वियोगवराह हन्यो युग शैलकों सधिमे इंगवैडारी॥१०॥
श्री कुञ्जबिहारी ( श्रीकृष्ण ) के रात के विलास के पश्चात् वृषभान सुता ( राधा आलस्य मे भरी हुई प्रात काल जगी है। 'केशवदास' कहते है कि वह पान की पीक और काजल की रेखा को अपने आचल से पोछने लगी जिससे काजल को काली रेखा भी मिट गई। परन्तु कुचो के बीच जो नखक्षत ( नख का लगा हुआ चिन्ह ) लगा हुआ था उसे आँखो से देखकर दूनी लज्जित होने लगी। वह नखक्षत ऐसा ज्ञात होता था मानो वियोग रूपी बाराह ( शूकर ) ने दो पहाडो की सन्धि मे प्रहार किया था, सो उसका एक दाँत पड़ा हुआ रह गया है।
४---त्रिकोणवर्णन
दोहा
शकट, सिघारो, वज्र, हर, हरके नैन निहारि।
केशवदास त्रिकोणमहि, पावककुण्ड विचारि॥११॥
'केशवदास' कहते है कि शकट ( छकडा गाडी ), सिंघाडा, वर्ज, हल, श्रीमहादेव जी के नेत्र और अग्नि कुड---ये इस पृथ्वी मे ( ससार मे ) त्रिकोण माने जाते है।