कुछ माँगने को कहा तो इन्होंने केवल यही माँगा कि 'आपकी कृपा के सिवा मुझे और कुछ न चाहिए । 'आप जैसी कृपा मुझपर करते आए हैं, वैसी सदैव करते रहिए ।' दूसरी बार जब यह बीरबल महाराज के यहाँ गये, तब उन्होने भी कुछ माँगने के लिए कहा । तब भी इन्होने धन की कामना नहीं की और केवल यही कहा कि 'आपके दरबार में मुझे कोई न रोके ।'
इनका कुल विद्वानों का कुल था । इनके सभी पूर्वज संस्कृत के प्रकांड पंडित थे । इनके एक पूर्वज भाऊराम ने वैद्यक के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'भाव प्रकाश' की रचना की थी । पिता काशीनाथ मिश्र ने ज्योतिष की प्रसिद्ध पुस्तक 'शीघ्रबोध' लिखी ।
इन्होने कुल मिला कर नौ ग्रन्थों की रचना की जिनके नाम (१) रामचन्द्रिका (२) कविप्रिया (३) रसिक प्रिया (४) विज्ञान गीता (५) रत्नबावनी (६) वीर सिंह देव चारित्र (७) जहाँगीर जस चन्द्रिका (८) नख-शिख तथा (९) राम अलकृत मंजरी है। इनमें से अन्तिम दो पुस्तके प्राप्य नहीं है । शेष सात पुस्तकों में से 'रामचन्द्रिका', 'कविप्रिया' तथा रसिक प्रिया एवं विज्ञानगीता को विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई ।