मुझे कुछ ध्यान भी है। उसके नेत्र बाणों से भी बढ़कर तीक्ष्ण है। उन्होने शरीर बेध डाला, मन बेध डाला और मन की बुद्धि विवेकशक्ति भी बेध डाली।
( इसमें 'बेधना' क्रिया तीन बार भिन्न-भिन्न सज्ञाओ के साथ प्रयुक्त हुई हैं, अत पुनरुक्ति दोष नहीं है।
देश-विरोध दोष
मलयानिल मन हरत हठ, सखद नर्मदा कूल।
सुबन सघन घनसार मय, तरुवर तरल सुफूल॥५४॥
नर्मदा का किनारा सुखदायी है। वहाँ मलयानिल हठपूर्वक मन को हर लेता है। वहीं सुन्दर घने कपूर के वन तथा सुन्दर फूलोवाले वृक्ष हैं। ( इसमे नर्मदा नदी के किनारे मलयानिल और कपूर का वर्णन करना देश-विरुद्ध है। )
मरुसुदेश मोहन महा, देखौ सकल सभाग।
अमलकमलकुलकतितजहँ, पूरण सलिल तड़ाग॥५५॥
सभी भाग्यशालियो देखो। मरुदेश बड़ा ही सुन्दर और मन को हरनेवाला है, जहाँ पानी से भरे हुए तालाबों में निर्मल कमल खिले हुए है। ( इसमें भी मरुभूमि के जल से भरे हुए तालाबो में कमलो का वर्णन करना देश विरुद्ध है क्योकि मरुभूमि में तालाबो का अभाव होता है। )
काल विरोधी दोष
प्रफुलित नव नीरज रजनि, बासर कुमुद विशाल।
कोकिल शरद मयूर मधु, वर्षा मुदित मराल॥५६॥
रात में नवीन कमल और दिन में विशाल कुमुद पुष्प खिले है।
शरद ऋतु मे कोयल, वसन्त में मोर और वर्षा में हँस प्रसन्न होते है। ( इसमे रात को कमल, दिन मे कुमुदिनी, शरद ऋतु में कोयल, बसन्त में मोर और वर्षा में हंसो का वर्णन करना काल विरुद्ध है। )