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हे राजन्! जिस हाथी के शरीर की सुन्दर सजावट है, जो सुन्दर सुन्दर रंग वाला, बलवान तथा बड़ा है और जो मानो काल के समान सुशोभित है, उसे मँगाकर सवार हूजिए। ( इस दोहे मे 'मानहुँराजत काल' वाक्य सुनने मे अप्रिय लगता है अत कर्णकटु दोष है। )

( ८ ) पुनरुक्ति दोष

दोहा

जब एक बार कहने के बाद फिर उसी बात को कहा जाता है, तब 'पुनरुक्ति' दोष होता है, वह चाहे शब्द में हो या अर्थ में।

उदाहरण

सोरठा

मघवा घन आरूढ, इन्द्र आजु अति सोहिये।
ब्रजपर कोप्यौ मूढ, मेघ दशौ दिशि देखिये॥१५॥

मघवा इन्द्र धन ( बादलो ) पर सवार है। इन्द्र आज बहुत अच्छा लगता है। वह मूढ़ ब्रजपर कुपति हुआ है। दशो दिशाओ में मेघ दिखलाई पड़ते हैं। [ इस दोहे में 'मघवा', 'इन्द्र' तथा 'धन' और 'मेघ' शब्दों में अर्थ की पुनरुक्ति है। ]

दोष निवारण

दोहा

दोष नही पुनरुक्ति को, एक कहत कविराज।
छांडि अर्थ पुनरुक्ति को, शब्द कहौ यहि साज॥५२॥

एक कविराज कहते है कि यदि अर्थ का पुनरुक्ति को छोड कर शब्द की पुनरुक्ति करो तो कोई दोष नहीं होता।

उदाहरण

लोचन पैने शरनते, है कछु तोफहँ सुद्धि।
तन बेध्यो, मन धिकै, बेबेधी मनकी बुद्धि॥५३॥