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(६) क्रमहीन दोष

क्रमही गुणनि बखानिके, गुणी गुनै क्रम हीन।
सो कहिये क्रमहीन जग, केशव कहत प्रवीन॥४६॥

जब कुछ गुणों का क्रम से वर्णन करके फिर गुणियो का नाम गिनाते समय क्रम भग हा जाय, तब उसे 'क्रमहीन' दोष कहते हैं।

उदाहरण

तोटक छन्द

जगकी रचना कहु कौने करा केहि राखन की जिय पैज धरी।
अति कोपिके कौन सँहार करै हरजू हरिजू निधि बुद्धि ररै॥४६॥

संसार को रचना किसने की? किसने संसार की रक्षा करने की प्रतिज्ञा की? अत्यन्त क्रुद्ध होकर कौन संहार करता है? बतलाओ।उत्तर में, बुद्धि हर, हरि और ब्रह्मा का नाम रटती है।

[ इस छन्द में पहले तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के गुणो का क्रम से वर्णन किया गया है, परन्तु बाद में, उनके नाम गिनाते समय क्रम में उलट फेर कर दिया गया है अत: 'क्रमहीन' दोष है। वास्तव मे विधिजू, हरिजू, हरजू होना चाहिए। यही क्रम ऊपर गिनाए हुए गुणो के क्रम से मिलता है। ]

(७) कर्णकटु प्रयोग

दोहा

कहत न नीको लागई, सो कहिये कटुकर्ण।
केशव दास पवित्त मे, भूलि न ताको वर्ण॥४८॥

जो कहने सुनने में अच्छा न लगे उसे 'कर्णकटु' दोष कहते हैं। 'केशवदास' कहते है कि इस दोष को भूल कर भी कवित्त मे न लाओ।

उदाहरण

दोहा

वारन बन्यो बनाव तन, सुवरण बली विशाल।
चढ़िये राज मॅगाइकै, मानहुँ राजत काल॥४९॥