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( ३४१ ) कमलबन्ध दोहा राम राम रम छम छम, सम दम जम श्रम धाम । दाम काम क्रम प्रेम वम, जम जम दम भ्रम वाम ॥६॥ कमलबन्ध दौ/द ताता 2 अथ मंत्रीगति सवैया राम कहो नर जान हिये मृत लाज सबै धरि मौन जनावत । नाम गहो उर मान किये कृत काज जबै करि तौन बतावत ।। काम दहो हर आनहिये बृतराजै जबै भरि भौन अनावत ।। जाम चहो वर पान पिये धृत आज अबै हरि क्यों न मनावत ॥१॥