( ३२९ ) वह नायक वैस ( वयस वाला ) युवा है, सुवेश (अच्छे वेश) वाला है और सदेशु अर्थात् एक ही देश का निवासी है अत: उसे खरे रूप से ऐसा वश मे कर ले कि जी का घातक मान नष्ट हो जाय । हे कामिनी । तू अपनी वेस रची (युवावस्था) का फल चिरकाल तक ले । वहाँ के जीव नीरुत (मौन) है अत. वही तेरे चित्त की बनेगी अर्थात् मन की अभिलाषा पूर्ण होगी । वह बन एक कोस मे है पर हे सजनी सुन । तू धीर धारण किये रहना। पर्वत पर रहकर, नवीन प्रेममयी शोभा से शुशोभित होना । अब चल । मैने मनमे यही सुन्दर । समय ) समझा है । __आगे केशवदास जी ने कुछ छन्द ऐसे लिखे है, जिनसे तरह तरह के चित्र बन सकते है। नीचे लिखे दोहे से चार प्रकार के जो चित्र बनते हैं वे नीचे दिये जाते हैं- अथ कपाटबद्ध दोहा इन्द्रजीत संगीतलै, किये रामरस लीन । क्षुद्र गीत संगीतलै, भये कामबस- दीन ||७४ कपाटबद्ध चक्र |heiFFER |her SEEM
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