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व्यस्त गतागत

दोहा

सूधो उलटो बॉचिये, औरै औरै अर्थ।
एक सवैया में सुकवि, प्रकटत होइ समर्थ॥७०॥

जहाँ सीधा और उलटा पढ़ने में दूसरे-दूसरे अर्थ निकलें उसे व्यस्त गतागत कहते है। ऐसे एक भी सवैया में कवि की सामर्थ्य प्रकट हो जाती है।

उदाहरण

गतागत

सवैया

मासम सोह, सजै वन, वीन नवीन वजै, सहसोम समा।
मार लतानि बनावत सारि रिसति वनावनि ताल रमा॥
मानव हीरहि मोरद मोद दमोदर मोहि रही वनमा।
मालबनी वल केशवदास सदा वशकेल बनीबलमा॥७१॥

तू मा (लक्ष्मी) जैसी सुशोभित है, वन सजा हुआ है नवीन वीणाएँ बज रही है। सोम अर्थात् चन्द्रमा समा (छटा) सहित सुशोभित हो रहा है।

तू माँ अर्थात् श्री लक्ष्मी जी के समान सुशोभित है। वन सजा हुआ है नवीन वीणाएँ बज रही हैं और चन्द्रमा युक्त चाँदनी छिटकी हुई है। मार (कामदेव) की लता जैसी सुन्दरियो को, वीणा की घोरियो जैसा जड़वत बना अर्थात् उन्हें अपनी राग के आगे तुच्छ बना दे और श्रीताल की बनावट पर रिसा जा अर्थात् क्रोध प्रकट कर (कि वे अच्छी नहीं बनती।) मनुष्य के हृदय रूपी मोर को आनन्द देने वाले दामोदर (श्रीकृष्ण) उसी वन में हैं। वन की माँ अर्थात् शोभा उनपर मोहित हो रही है। मैं बलिहारी जाती हूँ केशव अर्थात् श्रीकृष्ण सदा तेरे