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(३२४)

शासनोत्तर

दोहा

तीनि शासननि को, एकहि उत्तर जानि।
शासन उत्तर कहत हैं, बुधजन ताहि बखानि॥६४॥

जहाँ तीन-तीन बातों के उत्तर एक ही वाक्य में दिया जाता है, वहाँ बुद्धिमान लोग उसे शासनोत्तर अलङ्कार कहते हैं।

छप्पै

चौक चारु करु, कूप ढार, धरियार बाँध घर।
मुक्तमोल कर खग्ग खोल, सींचहि निचोल वर॥
हय कुदाव, दै सुरकुदाव, गुणगाव रङ्कको।
जानुभाव, सिवधाम धाव, धन ल्याव लङ्कको॥
यह कहत मधूकरशाहि के, रहे सकलदीवानदबि।
वब उत्तर केशवदास दिय, घरी न, पाञ्यी, जान, कवि॥६५॥

(१) सुन्दर चौक लगा (२) कुएँ से पानी निकाल (३) घड़ि-याल बाँध। (४) मोतियों का मोलकर (५) खङ्ग निकाल (६) सुन्दर कपड़े को धो (७) घोड़े को कुदा दे (८) स्वर से धोखा दे (९) रंक का गुण गा। (१) भावो को जान (११) सबके घर जा (१२) लंका का धन ले आ। इन प्रश्नो को राजा मधुकर शाह ने किया तो सभी सभा चुप हो गई, अर्थात् कोई उत्तर न दे सका। यह देख 'केशवदास' ने (ऊपर लिखे) तीन-तीन प्रश्नो का एक-एक उत्तर 'घरीन' 'पानीन' 'जान न' और 'कवित्त' में दे दिया। [पहले तीन प्रश्नो का उत्तर है कि छटी नहीं है। अर्थात् चौक पूरने के लिए घड़ी या मुहूर्त नहीं है पानी खींचने के लिए घरी या गराड़ी नहीं है और घड़ियाल बाँधने के लिए घड़ी नहीं है। इस तरह आगे के तीन प्रश्नो का उत्तर 'पानी नहीं, है। अर्थात् मोती में आब नहीं है, तलवार पानी