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उत्तर हैं। फिर इन्हीं को उलट दीजिये तो 'नम' 'मय' 'यरा' (जरा=बुढ़ापा), 'राग', 'गर', 'ख' और 'बन' उत्तर निकलते हैं। ये पिछले ७ प्रश्नो के उत्तर हुए अंतिम प्रश्न 'इन्द्रजीत कहाँ बसते है' का उत्तर 'नवरंगराय मन' होगा। अर्थात् वह 'नवरंगराय' के मन में निवास करते हैं। इसमें आवश्यकतानुसार अनुस्वार छोड़ दिया गया है और 'य' को 'ज' मान लिया गया है, क्योंकि चित्रालंकार में यह दोष नहीं माना जाता।]

दोहा

उत्तर व्यस्त समस्तको, दुवो गतागत जान।
केशवदास विचारिके, भिन्न पदारथ आन॥५६॥

'केशवदास' कहते हैं कि इसमें व्यस्त और समस्त दोनो अर्थ होते है, जिनमे व्यस्त उत्तर गतागत (सीधे-उलटे) होते हैं और समस्त सीधे ही होते हैं परन्तु उनमे पदो का अर्थ भिन्न हो जाता है।

उदाहरण

सवैया

दासनसों, परसों, परमानकी, बातसों बात कहा कहिये नय।
भुपनसों उपदेश कहा, किहि रूपमले, किहि नीति तजै भय॥
आपु विषैनसों क्यों कहिये, बिनकाहि भये, क्षितिपालन के क्षय।
न्याय कै बोल्यो कहा यम केशव, को अहिमेध कियोजनमेजय॥६०॥

दासो से क्या कहते है । शत्रु से क्या कहना चाहिये? प्रमाण को बात को नीति पूर्ण ढंग से क्या कहना चाहिए। राजाओ को क्या

उपदेश देना उचित है? किससे रूप अच्छा लगता है। नीति को छोड़ देने पर क्या भय है। अपने से सबन्ध रखने वालो से क्या कहना चाहिए। क्या न होने से राजाओं का क्षय होता है। 'केशवदास' कहते है कि पापियो का न्याय करके यमराज क्या कहते हैं?' तथा सर्पमेघ

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