को प्यारो जगमाहिं, कहा क्षत लागे आवत।
को वासर को करत, कहा संसारहि भावन॥
कहु काहि देखि कायर कॅपत, आदि अन्त को है शरन।
तहँ उत्तर केशवदास दिय, 'सबै जगत शोभाधरन'॥५३॥
सज्जन लोग क्या नहीं बोते? गोपियाँ क्या सुनकर मोहित होती है? दास का क्या नाम है? कवित्त के लिए हितकारी कौन कहलाता है? संसार में प्यारा कौन है? घाव लगने पर क्या आता है? दिन को कौन करता है? संसार को क्या अच्छा लगता है? कायर लोग किसे देखकर कॅपने लगते है? आदि और अन्त में कौन शरण है? 'केशवदास' इन सबो का उत्तर 'सबै जगत शोभा धरन' में देते हैं। [वहाँ 'सबै जगत शोभा धरन' वाक्य का अतिम अक्षर 'न' है। इसी 'न' में इसी वाक्य के आदि से एक-एक अक्षर क्रम से जोड़ते चलिए वो सभी प्रश्नो के उत्तर इस प्रकार निकलेंगे। पहला अक्षर से है उसमें 'न' जोड़ा तो 'सन' बना। यह पहले प्रश्न का उत्तर हुआ। इसी तरह 'जन, गन' (कविता के शुभगण) 'तन शोन' (रक्त), 'भान' (सूर्य), 'धन' और 'रन' (रण) शब्दो के बनने से सभी प्रश्नो के उत्तर निकल आते है। अंतिम प्रश्न आदि अन्त का शरण कौन है?' का उत्तर अन्त का पूरा वाक्य 'सबै जगत शोभा धरन' है अर्थात् सारे संसार की शोभा को धारण करने वाले श्रीकृष्ण ही आदि अन्त में प्राणियो की शरण हैं।
व्यस्त समस्तोत्तर
दोहा
मिलै आदि के बरणसों, केशव करि उच्चार।
उत्तर व्यस्त समस्तसो, सॉकर के अनुहार॥५४॥
'केशवदास' कहते हैं कि 'आदि के अक्षर-जंजीर की कड़ियो की तरह जोड़ने से जहाँ प्रश्नो के उत्तर बनते जाते हैं, वहाँ व्यस्त समस्तोत्तर अलङ्कार होता है।