'देशविरोध', 'काल विरोध', 'लोकविरोध', न्याय और आगम ( शास्त्र ) के विरोधो को भी विचारपूर्वक छोड़ दो।
केशव गन शुभ सर्वदा, अगन अशुभ उरआनि।
चारिचारि विधि चारु मति, गन अरु अगन बखानि॥१८॥
'केशवदास' कहते हैं कि गण ( सुगण ) सर्वदा शुभ माने जाते हैं और 'अगण' ( कुगण ) को सदा अशुभ समझना चाहिये। बुद्धिमानो ने 'गण' और 'अगण' को चार-चार तरह का बतलाया है।
मगन, लगन, पुनि भगन, अरु यगन, सदा शुभ जानि।
जगन, रगन अरु सगन पुनि, तानहि अशुभ बखानि॥१९॥
'मगण', 'नगण', 'भगण' और 'यगण' इन्हें सदा शुभ समझा जाता है और 'जगण', 'रगण', 'सगण', तथा 'तगण' को अशुभ माना गया है।
मगन त्रिगुरुयुत त्रिलघुमय, केशव नगन-प्रमान।
भगन आदिगुरु आदिलघु, यगन बखानि सुजान॥२०॥
'केशवदास' कहते हैं कि तीनो गुरु अक्षरो से युक्त 'मगण' और तीनो लघु अक्षरो वाला 'नगण' कहलाता है। जिसके आदि में गुरु होता है उसे 'भगण' तथा जिसके आदि मे लघु होता है उसे 'यगण' कहते है।
जगन मध्यगुरु जानिये, रगन मध्यलघु होइ।
सगन अंतगुरु अंतलघु, तगन कहत सब कोइ ॥२१॥
जिसके मध्य में गुरु हो उसे 'जगण' और जिसके मध्य में लघु हो उसे 'रगण' समझिए। इसी प्रकार जिसके अंत में गुरु होता है उसे 'सगण' और जिसके अंत में लघु होता है उसे 'तगण' कहते है।